तेरी आँखों की चाहत में तबाह कर लूँ खुद को, या मेरे रंजो गम की स्याही पर मरहम लगाती तुम्हारी मुस्कान पर मर मिट जाऊँ...
जुस्तजू-ए-क़फ़स कह रहा कैद हो जाऊँ तुम्हारी तप्त आगोश की गर्मी में, या काला वो नुक्ता बन जाऊं तुम्हारे सदके में फ़ना होते मर जाऊँ...
दिल कहता है कोई नज़राना दूँ लबों पर ठहरी हंसी पर फ़िदा होते, या ए जान तुम्हारे पहलू में बैठकर तुम्हें यूँहीं देखते हुए ज़िंदगी बिता दूँ...
होती है नज़ाकत मर्द के वजूद का भी हिस्सा, मोहसिन मेरे एहसासों को उन्मुक्त करते बह जाऊँ तुम्हारी हर अदाओं पर आँखें मूँदे...
इतराती है मेरी मोहब्बत इस रिश्ते की पाक सच्चाई पर तुमको पाकर और कोई ख़्वाहिश नहीं, दिल करता है हर खिड़कियां बंद कर दूँ...
तुम्हारी एक नज़र की प्यासी मेरी आँखों में काजल की जगह तुमको भर लूँ, इश्क मेरा कहता है जान मेरी ज़िंदगी तुम्हारे नाम कर लूँ...
कहो तुम्हारी खुशी किसमें है कायनात में बसे हर ज़र्रे का नूर तुम्हारे नज़र कर दूँ, चाहत को मेरी आज़मा लो नखशिख मैं खुद को तुम्हें समर्पित कर दूँ...
भावना ठाकर 'भावु' (बेंगुलूरु, कर्नाटक)
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