"मोबाइल ने छीनी साहित्य की धरोहर"
@भावना ठाकर
छोटे से मोबाइल ने हम इंसानों को जितनी सुविधाएं दी है उतना ही कुछ चीज़ों से परे कर दिया है।
आज ऐसा प्रतीत होता है मानों साहित्य के संसार में एक मौन का मुकाम ठहर गया है, साहित्य के प्रति आज की पीढ़ी नीरस और परे होती नज़र आ रही है। सिवाय पाठ्य पुस्तक के आज के बच्चे ओर कुछ पढ़ने में दिलचस्पी ही नहीं रखते। जैसे समय मिलता है मोबाइल की माया में उलझ जाते है। आज एक वैचारिक क्रांति द्वारा हर अच्छा लिखने वालों का दायित्व बनता है की साहित्य के प्रति उदासीनता का विष्लेषण करें और एक अहम निष्कर्ष पर संतोषजनक परिस्थिति का निर्माण करके सुघड़ सामग्रियों सी रचनाओं से साहित्य को उपर उठा कर मसौदा तैयार करें और वर्तमान पीढ़ी को साहित्य के प्रति आकर्षित करें।
कुछ एक वर्ग आज भी साहित्य प्रेमी है, हर पाठक की पसंद को ध्यान में रखते हुए हर भाषाओं को शब्दों की ज़ुबान देकर सबको को जागरूक करना होगा रुचिकर लेखन परोस कर रस जगाना होगा। कालानुक्रमिक रुप से चले आ रहे लेखन में परिवर्तन की आवश्यकता है साहित्य अध्ययन मांग रहा है। अनुभव और अध्ययन से चिलाचालू घरेड़ से उपर उठकर रचनाकारों को पुस्तकालयों को अपनी आगवी और रोचक शैली से परिभाषित करना होगा। मोबाइल जैसे छोटे से मशीन ने कलम से दो ऊँगलियों का बलिदान ले लिया सबकी दुनिया एक अंगूठे पर सिमित हो गई है, लेखक भी कहाँ पैदा हो रहे है। इसलिए आधुनिकरण के युग में साहित्य की ओर जनचेतना को जगाना होगा,एक ज़माना था पुस्तकालयों पर पाठकों का मजमा उमड़ता था, बुकिंग करवानी पड़ती थी मैनेजर बोलते थे बुक बाहर गई है दस दिन बाद मिलेगी और हम इंतज़ार करते थे। उससे विपरित आज पुस्तकालय सूनसान लगते है।
क्या ये लेखकों की तौहीन नहीं क्यूँ आज भी पढ़ने के शौकीन पुराने लेखकों की पुस्तकें ढूँढ कर पढ़ते है ? दमदार लेखन का कोई मुकाबला नहीं लेखन और पठन आज श्रवण पर और द्रश्य पर आ गया है। आज की पीढ़ी को वापस साहित्य की तरफ़ मोड़ना का दायित्व लेखकों का बनता है। साथ में माँ-बाप को भी
बचपन से ही बच्चों को अच्छी किताबें पढ़ने की आदत ड़ालनी चाहिए। रट्टा मारकर डिग्री मिलती है पठन पाठन से इतिहास और धर्म का ज्ञान मिलता है।
एक तो विदेशी भाषा के आक्रमण ने हमरी भाषाओं को शिकंजे में लिया है, जिसे हराकर हमें हमारे साहित्य को समृद्ध बनाना होगा। पुस्तक के बिना समाज की कल्पना ही नहीं। हर लेखक को, सरकार को और पूरे समाज को ये मुहिम उठानी होगी। रचनाकारों को सृजन की ऊँचाई शक्ति को बढ़ाना होगा। साहित्य साधना है एक तरफ़ देखा जाए तो युवा साहित्यकारों का मेला लगा हुआ है। बस जरूरत है उसमें से अनमोल गौहर छांटने की। लेखकों को अपनी लिखी पुस्तकें खास मौकों पर अपनों को उपहार के तौर पर भेंट करते रहना चाहिए। पश्चिमी देशों ने हमारे साहित्य का भरपूर फ़ायदा उठाया है। व्यक्ति को पुस्तक मनोरंजन, ज्ञान ओर दक्षता प्रदान करके इंसान बनाती है ये बात समझकर समाज में लोगों के हलक के नीचे उतारनी होंगी। साहित्य के क्षेत्र में ऐसी अनेक प्रतिभाएँ अस्तित्व में हैं जिनकी कालजयी रचनाएँ उत्कृष्ट साहित्य' की श्रेणी में आती हैं लेकिन सार्थक मंच के अभाव में ये रचनायें समाज के सुधी पाठकों के ध्यान में नहीं आ सकीं। आज के रचनाकारों को ऐसे रत्नों के साहित्य को प्रकाश में लाना चाहिए। दिवंगत एवं वर्तमान काव्य प्रतिभाओं की प्रतिनिधि रचनाएँ गज़ल, नज़्म, शेर, शायरी, फीचर, आलेख, कहानियाँ और कविताओं से अवगत कराने का संकल्प करना चाहिए।
दिवंगत रविन्द्र नाथ टेगोर, हरिवंश राय बच्चन,गोपाल सिंह नेपाली,प्राण गुप्त, महादेवी वर्मा ओर गोपाल दास नीरज जैसे महान साहित्यकारों के पारंपरिक रचनाओं को समझकर अपनी रचनाएँ उस पायदान तक पहुँचा कर रचना धर्मिता की पृष्ठभूमि पर उकेर कर जनमानस में स्थापित कर साहित्य को दर्पण की भाँति रखना होगा।
कहानी सम्राट मुंशी प्रेमचंद की हर कहानी यथार्थ के आधार से जुड़ी आमजन की पीड़ा को वाचा देती होती थी। वर्तमान लेखकों को तिलीस्मी दुनिया से निकलकर आज की पीढ़ी के मानस को समझना होगा। रचना में पाठक को खुद के जीवन का आत्मदर्शन होना चाहिए। पढ़ कर लगे की हाँ ये तो मेरी कहानी है। आज के उभरते लेखकों का दायित्व बनता है की सशक्त लेखन माध्यम से पाठकों की रग पहचानकर साहित्य के ज़रिए समाज को उजागर करके साहित्य की धरोहर को बचाना होगा।
बेंगुलूरु, कर्नाटक
Comments
Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓
No comments yet.
Be the first to express what you feel 🥰.
Please Login or Create a free account to comment.