तुम बहती हो मुझमें

तुम बहती हो मुझमें

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Bhavna Thaker
Bhavna Thaker 11 Feb, 2022 | 1 min read
Prem Bajaj

तुम्हारा वजूद कायनात का नूर 

पूष की कुनी धूप है 

तुम्हारे गेसूओं से उठती सुगंध..

पुकारते है तुम्हारे लब जब मेरा नाम

इंद्रधनुष के सातों रंग 

मेरी आँखों में उभर आते है..

ठोड़ी का तील टिका है काला

कहता जो बुरी नज़र वाले

तेरा मुँह काला

पंक्तिबद्ध दंत अनार दाने 

सप्तर्षि से चमकते है खुलते ही 

दो कलियाँ लब की मुस्कुराते है.. 

दाएँ वक्ष पर चमकती अरूंधति 

कलाई नर्म मलाई सी 

ऊँगलियों के मध्य सुशोभित 

अंगूठी में मेरी तस्वीर महकती 

आहा पागल करती..

नाभि से अंकुरित होता इश्क 

मेरी नासिका में उन्माद भरता

थिरकते पैरों से नूपुर की रूनझुन 

बगावत है मेरे चैनों सुकून से..

कितने शोभित है सपने तुम्हारे

सागर की मौजों से 

तैरते है नैंन कटोरीयों में.. 

तुम्हारी पीठ से बजती है सरगम 

तुम्हारे लबों से नग्में झरते है

छलकती सुराही सी गरदन से 

झाँकती है धार पानी की 

जब उतरती है तुम्हारे पीते ही..

वक्त बँधा है तुम्हारे रेशमी ज़ुल्फ़ों से 

जुड़े के खुलते ही टिक टिक सा 

बहता है,

स्पर्श तेरा पावक कोमल 

छूते ही पुष्कर में खिले सैकडों कमल..

बातें तुम्हारी महकती कस्तूरी 

ओज भरती मेरे रोम-रोम 

साथ तुम्हारा जीवन जैसा 

साँसे देता पल पल 

तुम बहती हो मुझमें निरंतर

जैसे साँसों की सरगम ।।

(भावना ठाकर, बेंगुलूरु)#भावु

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