"नज़्म"

नज़्म

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Bhavna Thaker
Bhavna Thaker 05 Nov, 2020 | 1 min read
Prem Bajaj

"नज़्म"

अधूरे इश्क की रस्म तुम  निभा जाना कभी,

चाहत की बारिश में नहलाते रिझा जाना कभी।


सर-ए-शाम रह गई वो बात उस दिन होते होते,

गुदगुदाते एहसास को नजरों से छू जाना कभी।


अधूरे अफ़साने की ख़लिश खा जाएगी मुझे, 

आहट की झंकार जिंद में तू भर जाना कभी।


कैसा धुआँ उठा है देखो दिल की अंजुमन में ये, 

बुझ रही चिंगारी को हवा देने आ जाना कभी। 


क्या हुआ की फिर कभी मिलने तुम ना आ सके,

उस अधूरी बात का मतलब समझा जाना कभी।


भटकती है आँखें तुम्हें ढूँढती न जाने कहाँ-कहाँ,

बरसों जगी इन आँखों में नींद भर जाना कभी।


इश्क में मेरे दिखे अगर इबादत सी असर तुम्हें,

खुदाया इस नाचीज़ की झोली भर जाना कभी।


तौबा दरख़्त ना बन जाएँ दर्द की ख़लिश कहीं, 

हसरतों की कलियाँ तुम उर में भर जाना कभी।


तेरा है शुमार मुझमें तू आदतों में शामिल है मेरी,

ठहरी हुई बात को पूरा करने तू आ जाना कभी।

(भावना ठाकर, बेंगुलूरु)#भावु

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