मृत्यु ज़िंदगी की कड़वी सच्चाई है जन्म होते ही इंसान का सफ़र शुरू हो जाता है आहिस्ता-आहिस्ता मंज़िल ए मृत्यु की तरफ़ बढ़ते, ना समय का पता, ना सबब का कोई नहीं जानता इस रहस्य को।
चाँद तक को छू लिया इंसान ने पर मृत्यु क्या है, क्यूँ है, मृत्यु के बाद क्या है, मृत्यु का अनुभव कैसा है ये कोई नहीं बता पाया ना जान पाया। दैहिक मौत सबने देखी पर जिसे हम आत्मा कहते है उसका क्या ?
मृत्यु आत्मा के सफ़र का पड़ाव मात्र लगता है, आत्मा गतिशील है तन के भीतर साँसों की अवधि खत्म होते ही आत्मा दूसरे पिंजर की तलाश में निकल पड़ती है एसा सुना है, आत्मा एक ही है पर उसे ना तो मृत्यु से पहले की एक भी बात या घटना याद रहती है ना मृत्यु के बाद की, नये चोले के साथ नये सफ़र पर निकल पड़ती है।
कैसे अनावृत हो सकता है ये रहस्य ? शायद कभी नहीं होगा इंसान की जिजीविषा हार जाएगी ये ढूँढते हुए, ईश्वर कभी इस रहस्य से पर्दा उठने नहीं देंगे एक मृत्यु का डर ही तो इंसान को श्रद्धा से उस शक्ति की चौखट से जोड़े हुए है वरना तो इंसान मृत्यु का भी पर्याय ढूँढ लेता।
मृत्यु का तथ्य जानने की कोशिश अनादि काल से हो रही है, पुनर्जन्म की दंतकथाओं में तथाकथित बातें मृत्यु के बारे में कही जाती है पर साबित कुछ नहीं हुआ, ना आत्मा का स्वरूप किसीने देखा ना आत्मा को चोला बदलते हुए देखा पंचतत्व से बने तन के भीतर जो संचार बहता है वही आत्मा है, मानव शरीर नश्वर है जो जन्म लेता है उसकी मृत्यु निश्चित है।
पर मृत्यु के पश्चात देह का अग्नि में विलीन होते ही आत्मा का क्या होता है ये किसीको नहीं पता, कहते है इंसान के कर्मों के फलस्वरूप आत्मा को भुगतना पड़ता है फीर भी मोह माया के बंधन से लिपटा मनुष्य अपने स्वभावानुसार कर्मों की गठरी बाँधता रहता है।
मृत्यु के स्वरुप असंख्य है मुख्यतः आठ प्रकार से होती है चिंता, शोक, आघात, अकस्मात, दुर्घटना, रोग, बुढ़ापा या कुदरती।
अध्यात्म में एक मृत्यु को महामृत्यु भी कहा गया है साधना से प्राप्त सिद्धि के चलते भौतिकवाद से आत्मा का तारतम्य जब टूट जाता है तब उसके बाद आत्मा जन्म मृत्यु के फेरों से आज़ाद हो जाती है, पर इसे भी तथाकथित रहस्यों से जोड़ा जाएँ कहीं कोई पुष्टि नहीं आत्मा के सफ़र की।
मृत्यु से मिलने जन्म के अगले क्षण से ही इंसान की साँसे उल्टी गिनती शुरू कर देती है, मन के दृग में आडंबर पाले मृत्यु को मात देने की हर कोशिश आजमाता निश्चित समय पर बिना पीछे मूड़े चल देता है मृत्यु की ऊँगली थामें मौत का रहस्य अपने साथ लिए, शायद पुनर्जन्म होता भी होगा तो कहाँ कुछ स्मृतियों की संदूक में सहजा हुआ होता है पिछला कुछ भी।
कोरी स्लेट सी दिमागी परत लिए सदियों से जन्म मृत्यु के रहस्य का ताना बाना सुलझाने की कोशिश में आत्मा निरंतर भौतिक संसार के सफ़र में रहती है मृत्यु पहले भी रहस्य था आज भी रहस्य है और आगे भी रहस्य ही रहेगा।
(भावना ठाकर, बेंगलोर)
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