हल्का सा मुख़र हो जाओ

हल्का सा मुखर हो जाओ

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Bhavna Thaker
Bhavna Thaker 15 Feb, 2022 | 1 min read

स्वर्ग का दरवाज़ा इंतज़ार कर रहा है हल्का सा मुखर हो जाओ ये जो हया की एक परत ठहरी है दोनों के दरमियां हौले से हटा दो सनम.. 


मेरी आगोश की चौखट पर कदम रख दो, टहनी सी कमनीय अपनी काया को सौंप दो मेरी बाँहों को कश्ती समझकर..  


कबरी खोलकर गेसूओं को खुल्ला छोड़ दो ढ़क दो मेरे चेहरे को, जी चाहता है एक ख़ता कर लूँ गर इजाज़त हो..


मय से मीठी लबों की पंखुडियों को चूमने के तलबगार मेरे लबों को खुशी की हल्की सी झलक दे दो..


कुछ हुआ क्या? ये शीत सी सिसकी, गर्म सी आह और झुकी हुई पलकों से उठते शरारे मेरे एहसासों को जगा रहे है..


करीब आओ तुम्हारी गर्दन पर एक मोहर मल दूँ, ये जिस्म की संदली सुगंध मेरे इश्क की बेतरबी बढ़ा रही जानाँ.. 


हुश्न की शौख़ी है या आग का दरिया कोई पूष की ठंड़ी शाम में भी रोम-रोम बैसाखी बयार सी तप्त लू भर गई..


अपनी नाभि पर बरसती मेरी चाहत की बारिश में नहाते कहो कैसा लग रहा है, शायद जन्नत की हक़ीक़त इस मखमली स्पंदन से कम तो नहीं होगी।

#भावु

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