क्या तुम जानते हो

क्या तुम जानते हो

Originally published in hi
Reactions 0
447
Bhavna Thaker
Bhavna Thaker 16 May, 2022 | 1 min read

असंख्य बोझ लदे

संसार शतांग की सारथी

या ज़िंदगी के रंगमंच के

एक अहम किरदार को 

जो रोटी के संग शेकती है

अपने अधूरे अरमानों को 

क्या तुम जानते हो


आँखों में इंतजार लिए

अपने अस्तित्व को तलाशती

यशस्वी फिर भी

आधे अक्षत सी 

आपकी ही सहगामिनी को

कहो तुम कितना जानते हो 


आगाज़ भी वही उत्कर्ष भी

फिर भी सुरपति सी लड़ती

खंगालती है हर रिश्ते की 

अंदरूनी अलमारी 

सत्तारूढ़ के पैरों पर पड़ी 


नींद की मुन्तज़िर 

पर्याय ढूँढती सुख का

प्रतिक्षित प्यार की

वामा की भूखी व्यंजनाओं को

क्या पहचानते हो तुम


उपर देखते गगन में 

सप्तर्षि की चाल को देखते

अपने सितारे खोजती 

दयिरा की आँखों में झाँको कभी

एक आस का दरिया बसता है 


चुनकर देखो इनके

टूटे सपनों के कतरे

सहज कर रख लो अपने

उर आँगन में बो कर

एक दिन अमलतास खिलेगा

एक अबला की उम्मीदों का 


पर नहीं जानते तुम उनकी

आंशिक अभिलाषा को

एक वितरागी हृदय की

अधजली अन्वेषणा को

पूरा कर दो

पूर्णता की प्यास लिए

अपने एकांत में जूझती है


क्या कभी जान पाओगे

मैथुनी क्रिया के वक्त 

वामा कौनसी गली घूमती है

आपकी आगोश में पड़ी 

काया का दिमाग 

शक्ति और सामर्थ्य का जो

भंडार है अपने वजूद की

तलाश में भटकता रहता है


अर्धांगनी के एकल दुकल

अंग को जानने वालों 

नखशिख समझो वल्लभा को

आपके बीज को रक्षता नीड़ है

नहीं कोई जूती पैरों की

सर पर सजाकर रखिए

ताज सी, जगह उसकी वहीं है।

भावना ठाकर 'भावु' बेंगलोर

0 likes

Published By

Bhavna Thaker

bhavnathaker

Comments

Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓

Please Login or Create a free account to comment.