औरत तेरी यही कहानी

स्त्री की संवेदना

Originally published in hi
❤️ 0
💬 0
👁 788
Bhavna Thaker
Bhavna Thaker 17 Oct, 2020 | 1 min read
Prem Bajaj

कहाँ समेटे जाती है संवेदना की सरिता, शब्दों का समुंदर भी उमटे कागजी केनवास पर फिर भी स्त्री के असीम रुप को ताद्रश करना मुमकिन कहाँ..!

देखा है कभी गौर से ज़िंदगी के बोझ की गठरी के हल्के हल्के निशान, 

औरत की पीठ पर गढ़े होते हैं अपनी छाप छोड़े..!

हर अहसास, हर ठोकर, ओर स्पर्श के अनगिनत किस्से छपे होते है..! 

पोरों की नमी से छूना कभी जल जाएगी ऊँगलीयाँ..!

जिम्मेदारीयों का कुबड़ लादे एक हंसी सजी होती है हरदम लबों पर हौसले से भरी लबालब..!

एक ज़रा सी परत हटाकर देखना कभी मचल उठेगी गम की गगरी छलकती, 

देखना आहों का मजमा छंटकर बिखर जाएगा..!

क्या लिख पाएगा कोई उस पीठ पे पड़ी जिम्मेदार की गठरी के लकीरों की दास्तान..!

हौले से हाथ फिराकर रीढ़ तलाशना

हर स्पर्श की एक कहानी कहेगी वो

गली हुई तन की नींव सी हड्डी..! 

जिस दिन कोई लिख पाएगा उबल पड़ेगी ज्वालामुखी दबी हुई,

एक फूल सी सतह के नीचे ज़मीन में गढ़ी..!  

#सुबह से शाम तक दिन रथ पे सवार 

एक ज़िस्त में असंख्य किरदारों से लिपटी औरत की शख़्सीयत पे ही ये धरती थमी।।

भावु।

0 likes

Support Bhavna Thaker

Please login to support the author.

Published By

Bhavna Thaker

bhavnathaker

Comments

Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓

Please Login or Create a free account to comment.