"देर तलक"
सवालों के सफ़र नामे में ज़िंदगी भरने हम कायनात के हर ज़र्रे में छिपे जवाबों के घट खंगालते है देर तलक।
कभी-कभी कोहरा छंटता नहीं सर्द मौसम की क्षितिज पर जमा तब आदित भी अलसाए पड़ा रहता है पहाडों की गोद में देर तलक।
वादों के तानेबाने से उलझते यकीन के टीले पर बैठकर कोई किसीका इंतज़ार भी करता है देर तलक।
दर्द की ख़लिश पर उफ्फ़ तक नहीं करती उस पलकों की कोर पर कुछ बूँदें ठहर कर बरसती है देर तलक।
ज़िंदगी की आपाधापी में सफ़लता की चाबी को ढूँढते संघर्षों के बिहड़ जंगलों में कोई भटकता है देर तलक।
एक दिन सब ठीक होगा की आस पाले कोई अबला सहती है अपने शौहर की प्रताडना देर तलक।
दुनिया की हर शै उम्मीद पर टिकी सही समय का इंतजार करते वक्त की धुरी पर चलती रहेगी देर तलक।
अमावस के तम से धिरी बहुत सी जिंद कोई रोशन राह तकती है किस्मत की पूर्णिमा को तरसते देर तलक।
मंदिर मस्जिद गुरुद्वारों में कभी हाथ उठाए तो कभी हाथ जोड़े हम ईश की छवि निहारते है देर तलक।
ना बिछड़े कोई अपना अपनों से साँसों की रफ़्तार हर तन के पिंजर में धड़कन बन बहती रहे देर तलक।
(भावना ठाकर, बेंगुलूर)#भावु
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