भोर की ऊर्जा मन में भरकर खिड़की जब मैं खोलूँ एक व्योम प्यासा दिखता है मेरे सामने वाली खिड़की में मन मोहक सा मेहबूब मुझको दिखता है।
प्यासी आँखें इत उत भटके अवगुण्ठन की आस लिए देखूँ ना दिन भर जो उसको अश्कों का सागर उमटे कण भर की नित एक झलक पर सौ बार मेरा दिल बिकता है
बयार के संग चुम्बन उसका खिड़की से उपहार सा बहता आकर ठहरे गालों पर जब सुध बुध कम्पित खोते मुझ उर आँगन उपवन खिलता है।
बाँहें फैलाए मुझको पुकारे मिटे मुझ पर सबकुछ लूटाए पथ पर दिन रैन बिताए पागल नज़रों से मुझको ढूँढे एक आशिक मुझ पर रिझता है।
अदा उसकी बेमिसाल सी इश्क जताते उठती है छल्ला बनाते होंठ घुमाते साँस मेरी ओर फेंकता है मोहब्बत की अठखेलियों का सुंदर सा वो नुक्ता है।
मेरे सामने वाली खिड़की में एक मेरा दीवाना रहता है।
(भावना ठाकर, बेंगलोर)#भावु
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