"शमशीर की धार हूँ"
सांसारिक रथ का एक अहम पहिया हूँ कमज़ोर बुनियाद नहीं शमशीर की धार सी तेज़ तर्रार हूँ अश्क की आदी नहीं सहने में बेमिसाल हूँ..
ओज है मेरे रक्त की रवानी में पैरों की जूती न समझो सत्तात्मकों कुशाग्र बुद्धि का कम्माल हूँ..
हाँ मैं अपने आप में महान हूँ फिर भी सवाल उठता है रूह के भीतर से की मैं कौन हूँ?
वक्त की कठपुतली नहीं अपनी सियासत का शृंगार हूँ, ख़यालो के आवागमन पर लकीरों की चाल बदलने में कुशल हूँ..
धनी हूँ हौसलों की उर में साहस का सार रखती हूँ, हर जंग में अपना परचम लहराते जीतना बखूबी जानती हूँ..
हाँ मैं अपने आप में उत्कृष्ट हूँ फिर भी सवाल उठता है आत्मा की अंजुमन से कि मैं कौन हूँ?
संगम हूँ सरिताओं का, धैर्य मेरी धुरी है डर मेरे भीतर नहीं टिकता सहनशीलता का विस्तृत प्रमाण हूँ..
वेदों का अर्थ हूँ, पुराणों की गाथा हूँ, उपनिषद का सार समझो संसार रथ की संरचना हूँ..
मैं अपना ही अभिमान हूँ फिर भी सवाल उठता है दिल की संदूक से कि मैं कौन हूँ?
झुकती नहीं गिराना जानती हूँ आयुध नहीं कोई मेरा आँखों से वार करते
आततायियों की प्रतिद्वंदी हूँ..
कसौटी की धार पर कब तक ठहरी रहूँ नारी हूँ नारायणी सम, नर से रत्ती भर कमतर तो नहीं हूँ..
हाँ मैं अपने वजूद का प्रमाण हूँ फिर भी एक सवाल उठता है किससे जाकर पूछूँ कि मैं कौन हूँ?
भावना ठाकर 'भावु' बेंगलूरु
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