कह दो न चाँद मुबारक

कह दो न चाँद मुबारक

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Bhavna Thaker
Bhavna Thaker 20 Apr, 2022 | 1 min read

"कह दो न चाँद मुबारक"

ईद के दिन, रात की ठोड़ी पर बैठी स्याह शाम अकेले कोई कैसे बिताएं? 

सूनी है दिल की अंजुमन, बेकल है निगाहें सूने झरोखे में मेरा चाँद नज़र आए तो उदास मन में रौनक-ए-बहार आ जाए..


आज मेरे एहसासों का रोज़ा है, आज मैंने कुछ महसूस नहीं किया 

न तुम्हारी झलक देखी, न इश्क फ़रमाया, न गले मिला, न चुम्बन किया..


बहुत भूखे है एहसास मेरे 

ए चाँद मेरे पीछे से आकर कह दो न

"ए जान चाँद मुबारक" 

तुम्हारा मांग टिका चाँद की परछाई से कम तो नहीं, 

रुह अफ़्ज़ा सी लबों की सुर्खी हल्का सा लबों से छूकर बिस्मिल्लाह कर लूँ तो करार आए..

 

तुम्हें एक नज़र देखते ही जानते हो न इबादत हो जाती है मेरी,

कलमा है तुम्हारी आँखों की कशिश, 

तुम्हारी साँसों की महक लोबान की खुशबू, ईद की अज़ान सी तुम्हारी हंसी की धनक,

नखशिख बंदगी का पर्याय हो तुम..


कहाँ खुदा की झलक देखी है मैंने ! 

महबूब के माहताब से जुदा तो न होगी तस्वीर अल्लाह की,

मेरा जहाँ तो तुमसे ही रोशन है

क्यूँ ढूँढूं मस्जिदों में रोशनी नूर-ए-खुदा की..


अब तो आ जाओ न तड़पाओ

आसमान का चाँद नज़र आए न आए,

तुम्हारा आनन हथेलियों में भरकर, हिजाब हटाकर जी भर निहार लूँ जानाँ तो मेरी ईद मन जाए।

भावना ठाकर 'भावु' बेंगलोर

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