तुम्हारी मुस्कान का एक कण गिरा था मेरी हथेली की चौखट पर सर चढ़ा लिया मैंने उसे आरती समझकर..
रूह महक उठी है मेरी तुम्हारी साँसों की खुशबू जो मली थी उस हंसी में मैंने हाथ उठा लिए तुम्हें खुदा समझकर..
था वितरागी मन तुमसे नज़र मिलते ही अनुरागी बन गया तुमको खुद में बसा लिया अपनी जान समझकर..
यूँ सरेआम न घूमो छुपा लो चिलमन में चेहरा आशिक भँवरा चूम न ले तुम्हारे लबों को कहीं फूल समझकर..
गुज़रा न करो गली से तुम्हें देखकर थम जाती है धड़कन मौत कहीं उठा न ले जाए मुझे मुर्दा समझकर..
यूँ तुम्हारा कनखियों से मुझे तकना इश्क है या कुछ और ज़रा समझा जा कहीं गले न लगा ले ये पागल दीवाना तुम्हें अपना समझकर..
गर है जो तुम्हें भी मोहब्बत हमसे तो ज़रा इज़हार में पलकें झुका दो जानम उम्र काट लूँ तुम्हें अपना हमसफ़र समझकर..
भावना ठाकर 'भावु' बेंगलोर
Comments
Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓
No comments yet.
Be the first to express what you feel 🥰.
Please Login or Create a free account to comment.