पीड़ एक विधवा की

विधवा की पीड़

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Bhavna Thaker
Bhavna Thaker 02 Oct, 2020 | 1 min read

पीड़ एक विधवा की 

आज सत्य के करीब खड़ी हूँ साक्षात नहीं तुम उस ध्रुव तारे से झिलमिलाते मेरी कल्पनाओं के आसमान में विराजमान हो।

हर वक्त तुम्हीं को ढूँढ़ती रहती हैं आँखें, 

मन का हर कोना काटने को दौड़ता है

दीवारें भी अब आवाज़ वापस नहीं करती

काश कहीं से अचानक आकर तुम बोल दो कुछ अल्फाज़ मेरी पलकों पर अपनी हथेलियाँ दबा कर।

तुम्हारी खुशबू से सराबोर कमरे में रखी हर वो चीज़ में रची बसी महक याद दिलाती है तुम्हारी, हर करवट पर बिस्तर की खाली दूसरी बाजू पर हथेलियों का स्पर्श नैंनो को भीगो जाता है।

आराम कुर्सी का हवा के झोंके से ड़ोलना  ओर उस आहट पे मन का आह भरना दर्द की गर्द में ढ़ह जाता है मेरा वजूद। 

भोर की गाढ़ी नींद भी हल्की सी आहट से उड़ जाती है लगता है की हर आहट तुम्हारी है लाख चाहने पर भी तुमसे जुड़ी हर चीजें तुम्हारी याद दिलाती हैं।

वो नीली वाली शर्ट, वो कैप, वो घड़ी, ओर वो पेन जब-जब देखती हूँ तुम करीब ओर करीब महसूस होते हो।

वो गाना जो तुम दिन में मेरे कानों में असंख्य बार गुनगुनाते थे वो कहीं से बजने पर कानों में मानों शीशा घोलता है

मेरा मन तुम्हारे खालीपन को भरने से इंकार करता है।

तुमसे वाबस्ता हर बात तुम्हारी यादों के एहसास को जीवंत कर देती है।

क्या करूँ दुनिया की कोई शै तुम्हारी कमी को पूरा करने में असमर्थ है 

क्या अब कभी तुम्हें देख नहीं पाऊँगी, छू नहीं पाऊँगी, मिल नहीं पाऊँगी.. 

ये कैसा दस्तूर है ज़िंदगी का करोड़ों के मजमे में एक तुम ही नहीं हो।

पर मेरी आस का पंछी कितना मासूम कितना भोला बैठा रहता है बस एक 

तुम्हारे खयालों की मुंड़ेर पे न उड़ता है ना चहकता है।

नम आँखों से उसी दिशा को तकता है चार काँधे पर चढ़कर जिस दिशा में तुम चले गए, बस उम्मीद के दाने चुगता है ड़रता है कहीं बिखर न जाये वो लम्हें जो बिताये थे कभी तुम्हारे साथ शाम के साये में। 

सहज कर रखे है परवाज़ में तेरे सारे वादे तेरी सारी यादें देखता रहता है उन लम्हों के लम्स महसूस करता है तुम्हारे स्पर्श की खूश्बू जो आज भी महकती है मेरी रुह में उम्मीद का दामन थामें। 

इन्तज़ार का आशियाना बाँधे तो बैठा है 

पर मासूम कहाँ जानता है जाने वाले कहाँ लौटकर आते है सिर्फ़ उनकी याद आती है।

#भावु॥

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Bhavna Thaker

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Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓

  • Kumar Sandeep · 4 years ago last edited 4 years ago

    निःशब्द

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