"परिवर्तन संसार का नियम"
परिवर्तन संसार का नियम है इस उक्ति को सार्थक करते आज इक्कीसवीं सदी में इंसान ने हर मुद्दों में परिवर्तन को अपनाते हर क्षेत्र में क्रांति का परचम लहराया है।
पर इस वर्ष समय जो परिवर्तन लाया है उसे दुनिया के सारे लोग सदियों तक याद रखेंगे। एक भी त्यौहार खुशियों की रंगत लेकर नहीं आया। ना जन्माष्टमी मनी, ना नवरात्रि ना ही कोई तीज त्यौहार। समय ने सारी परंपराएं बदल दी सोचा था कभी किसीने कि पूरी दुनिया थम जाएगी। यातायात थम गया मंदिरों तक में ताले लग गए और इंसान घरों में कैद। समय का ये परिवर्तन भी सबने स्वीकार कर लिया।
इस संसार में कुछ भी अपरिवर्तनशील नहीं है। सब कुछ नश्वर और क्षणभंगुर है। परिवर्तन प्रकृति का नियम है। जो परिवर्तन को और अनित्यता को समझता है वही ज्ञानी है। वैसे भी एक सी शुष्क लय में कट रही ज़िंदगी से हम उब जाते है तन मन को थकान महसूस होती है। परिवर्तन जड़ता में साँसें भरता है, ऊर्जा देता है और हम परिवर्तन को अपनाते आगे बढ़ते है तब खुद में बदलाव पाते है। लाॅक डाउन के समय ने हर इंसान के जीवन में मूलतः बदलाव कर दिया था।
जीवन में परिवर्तन दो तरह से आते है एक तो कुदरती परिवर्तन जो प्राकृतिक होता है। जिसे ना हम रोक सकते है, ना हमारे बस में होता है। जैसे किसी बीमारी का फैलना, भूकंप, बाढ़ या अतीवृष्टि। और दूसरा जो हम लाते है हर क्षेत्र में बदलाव और नई टेक्नोलॉजी द्वारा उत्क्रांति की और बढ़ते है।
जीवन में भी कई परिवर्तन आते है , जनम से शिशु अवस्था , शैशव से किशोर अवस्था, किशोर से यौवन अवस्था , यौवन से प्रौढ़ अवस्था। इसके इलावा भी शादी, नौकरी , स्थान परिवर्तन वगैरह बहुत सारे परिवर्तन हमारे जीवन में आते है। सुख भी आते है दुःख भी होते है। मगर हम मनुष्य हर परिवर्तन को स्वीकार नहीं कर पाते है क्यूँकि हर परिवर्तन हमारा मन चाहा नहीं होता। हम चाहते कुछ और होता है कुछ और।
जैसे हर चीज़ के दो पहलू होते है सही और गलत वैसे। पर कुछ परिवर्तन हानिकर भी होते है जैसे वैचारिक परिवर्तन, फैशन और पश्चिमी सभ्यता का अतिरेक, आधुनिकता के नाम पर कुछ गलत आदतों के शिकार हो रही आजकल की पीढ़ी के लिए ये परिवर्तन बेशक हानिकारक है। तो परिवर्तन अगर सही मायने में अपनाना है तो क्रांतिकारी विचारों का अपनाना चाहिए नहीं की हानिकर्ता विचारों का।
कुछ लोग अठारहवीं सदी से बाहर निकलना ही नहीं चाहते, यदि हम समाज में निरंतरता को बनाए रखना चाहते हैं तो हमें यथास्थिति को छोड़ अपने आचार-व्यवहार को परिवर्तनोन्मुख बनाना ही होगा। तभी हमारी प्रगति संभव है। यदि हम परिवर्तन को स्वीकार नहीं करते, तो हम रूढि़वादी हो जाते हैं। ठहरे हुए जल की तरह, जिसका सड़ना निश्चित है। रूढि़वादी लोग स्त्री स्वतंत्रता, समान अधिकार, स्त्रियों की शिक्षा आदि परिवर्तनों को स्वीकार नहीं कर पाते और अंदर ही अंदर दु:खी होकर स्वयं को जलाते रहते है और ओरों की राह का रोड़ा बनकर मुश्किलें खड़ी करते है। जीवन में अच्छा बुरा समय आता रहेगा परिवर्तन को स्वीकारना साहस का काम है। अच्छे परिवर्तन को स्वीकार कर आगे बढ़ने का नाम ही ज़िंदगी है।
(भावना ठाकर, बेंगुलूरु)#भावु
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