तुम्हारी प्रीत की हथेलियों पर मेरे स्पंदन ने घरौंदा पाया, अपने स्नेह के धागों में मेरी प्रीत पिरोकर
इश्क के गन्ने से निचोडकर तुमने पिलाया अँजुरी भर वो सोमरस,
मेरे समर्पण को तुम्हारी आगोश ने थामा.!
मैं स्वप्न स्त्री हूँ तुम्हारी क्या-क्या नहीं किया तुमने,
तुम साक्षात प्रेम बन गए
मेरे वजूद में घुलकर.!
जब पहली नज़र पड़ी मुझ पर तभी दिल में शहनाई बजी ओर तुम्हारी आँखों ने मेरे चेहरे संग पहला फेरा लिया.!
वो गली के मोड़ पर ठहर कर तुम्हारा मुझे देखना, नखशिख निहारते नज़रों से पीना दूसरा फेरा था हमारा.!
मेरी दहलीज़ पर कदम रखते ही तुम्हारे, मेरी धड़कन का रफ़तार पकड़ना तीसरे फेरे की शुरुआत थी.!
चौथे फेरे में मुस्कुरा कर मुझे फूल थमाते घुटनों के बल बैठकर मुझे मुझसे मांगना
उफ्फ़ में कायल थी.!
वो दरिया के साहिल पर ठंडी रेत पर चलते मेरे हाथों को थामकर मिलों चलना पाँचवे फेरे का आगाज़ था.!
घर के पिछवाड़े गुलमोहर की बूटियों से मेरा स्वागत करना, मेरी चुनरी से अपने रुमाल का गठबंधन करके अपनी बाँहों में उठाना छठ्ठा फेरा था.!
मंदिर की आरती संग बतियाते मेरे गले में हार डालकर खुद को मुझे सौंपना सातवाँ फेरा समझलो.!
आहिस्ता-आहिस्ता तुमने खोद लिया इश्क का दरिया मेरे लिए,
वादा रख दिया मेरी पलकों से अपनी पलकें मिलाकर जीवन के उदय से अस्तांचल तक,
जवानी से लेकर झुर्रियों तक साथ निभाने का.!
तुम्हारी चाहत की छत के नीचे महफ़ूज़ है अस्तित्व मेरा, मैं समर्पित तुम आराध्य मेरे.!
पल-पल मुस्कुराती है ज़िंदगी मेरी,
तुमने हर इन्द्र धनुषी रंग दिए
मेरी पतझड़ सी ज़िंदगी को वसंत के पलाश दिए।
(भावना ठाकर, बेंगलोर)#भावु
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