एक सवाल

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Bhavna Thaker
Bhavna Thaker 08 Dec, 2020 | 1 min read
Prem Bajaj


एक लड़की और एक लड़का क्या अच्छे दोस्त नहीं हो सकते ?

प्यार, इश्क, मोहब्बत से परे भी क्या एक लड़की और लड़के के बीच या एक औरत और मर्द के बीच दोस्ती का रिश्ता भी हो सकता है? ये सवाल शायद सदियों से प्रश्नार्थ चिन्ह लिए खड़ा है। आज इक्कीसवीं सदी में भी हम खुद को खुल्ले ख़यालात वालें सिर्फ़ मानते है असल में होते नहीं। क्यूँ विपरीत सेक्स के दो लोगों के बीच के रिश्ते को गंदी नज़र और हल्की मानसिकता के साथ ही देखा जाता है। रिश्ता क्या होता है सबसे पहले ये समझने की जरूरत है। 

दो समझदार इंसानों के बीच आपसी समझ, लगाव, और एक दूसरे को नखशिख बखूबी समझने की भावना मतलब रिश्ता। दैहिक आकर्षण जिसमें कोई मायने नहीं रखता। जिसके साथ आप सहज महसूस करो, जिसके आगे दिल के तमाम राज़ बेजिजक खोल सको, जिसके साथ हर विषय पर खुलकर चर्चा कर सको या हर छोटी बड़ी बात जिसको बताए बिना हज़म ना होती हो वो है प्यारा दोस्त। तो क्या फ़र्क पड़ता है की वो लड़का है या लड़की, औरत है या मर्द। मतलब तो अपनेपन से है, दोस्ती से है। हमारे समाज में अगर दो भाई बहन भी रास्ते पर जा रहे होते है तो शक की निगाहों से देखा जाता है।

इसलिए शायद सदियों से चली आ रही सोच और विपरीत सेक्स को एक दूसरे के साथ देखने का नज़रिया हमें इस रिश्ते को स्वीकार करने से रोकता है। इस अद्भुत रिश्ते को समझना है तो कृष्ण और द्रौपदी के रिश्ते को समझो। कृष्ण ने राधा से जो प्रेम किया वह अलौकिक था जो दिखता था।

लेकिन कृष्ण ने एक और स्त्री से प्रेम किया गूढ़ और गहरा लेकिन वह दिखता नहीं था न दिखने का मतलब यह नहीं कि कृष्ण ने चोरी-छिपे यह काम किया। न दिखने वाले इस प्रेम का आशय उस प्लेटोनिक और अनन्य प्रेम से है, जो स्त्री-पुरुषों के दिल में पलता है। दैहिक नहीं उत्कृष्ट दैवीय प्रेम। आदर्श सखा और सखी का प्रेम। यह प्रेम इतना गहरा, इतना एकाकार था कि द्रौपदी का एक नाम कृष्णा भी है।

कृष्ण और द्रौपदी के बीच संबंध एक बराबरी का संबंध था जहां महिला और पुरुष में लिंग भेद की कोई दीवार नहीं थी। प्रखर समाजवादी विचारक और नेता राम मनोहर लोहिया ने कृष्ण और द्रौपदी के साहचर्य को एक महान संबंध के तौर पर परिभाषित किया था। दोनों के बीच दोस्ती को वह स्त्री-पुरुष के बीच दोस्ती का आदर्श रूप मानते थे। अद्भुत प्रेम था कृष्ण और कृष्णा का। कहने का तात्पर्य यह है की बिलकुल एक औरत और मर्द के बीच साफ़ सुथरा और सहज दोस्ती का रिश्ता हो सकता है। रिश्ते हंमेशा निश्चल, निर्मल, और नि:स्वार्थ ही होते है हमें अपनी सोच और नज़रिया बदल कर देखने की जरूरत है। ना जानें कितने रिश्ते बिना फ़ेरों के भी ताउम्र एक दूसरे के दोस्त बनकर जीते है। और जानें कितने रिश्तें शक की बीना पर खत्म होते बलि भी चढ़ जाते है। तो रिश्ते को समझे बिना गलत करार देना समझदारी नहीं।

(भावना ठाकर, बेंगलोर)#भावु

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