ये दुनिया ख़ौफ़ की बिहड़ नगरी है

ये दुनिया ख़ौफ़ की बिहड़ नगरी है

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Bhavna Thaker
Bhavna Thaker 17 Jan, 2021 | 1 min read
Prem Bajaj

कैद कर लिया है मैंने खुद को खुद के भीतर मेरे अनछुए तन को तकती है जब लोलूप नज़रें तब महसूस होता है मानों असंख्य बिच्छू रेंगते है मेरी त्वचा की परत पर।


ये दुनिया ख़ौफ़ की बिहड़ नगरी है,

मेरे स्निग्ध तन के कलपुर्ज़े से लालायित होते नौंचने को दौड़ती है।


मेरी हर आहट को सूंघते आख़िर दुपट्टे के आरपार बिंध कर शर्म की हर परतें मुझे तितर बितर करने की कोशिश में खुद को मेरी नज़रों में गिरा लेते है।


कहाँ छिपाऊँ अपनी जवानी की तरन्नुम को, एक नज़र मुझ पर पड़ते ही हर नज़रों में बेकल सी बज उठती है, 

जैसे मैं कोई नग्मा हूँ क्यूँ हर कोई गुनगुनाते निकल जाता है या नौरोज का उत्सव हूँ जो मनाते सिहर जाते है।


क्यूँ मेरे तन के असबाब को नज़रों से लूट कर उनकी पेशानी पर लज्जा का बल नहीं पड़ता,

सहस्त्र तृष्णाएं जन्म लेती है वहशियों की आँखों में मेरी आभा की रंगशाला की चकाचौंध से।


तो क्या हुआ की नाजुकता की डली हूँ 

मैं कोई ताजमहल या ऐतिहासिक स्मारक तो नहीं जो मेरी रचना का हवस भरी नज़रों से निरूपण किया जाए।


गौरवर्ण अभिशाप है मीठी चाशनी सा आकर्षित करते सीधे दरिंदों के मुँह से लार टपकने का मोहरा बनाता है, मैं अलकनंदा सी इठलाते कैसे चलूँ मेरी कमर पर पड़ते हर बल पर कातिलों की नज़र है।


क्यूँ मूँद नहीं लेते अपनी आँखें जैसे अपने घर की इज्जत को देख झुका लेते है।

#भावु

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