हाँ गाते है कुदरत के मौन नज़ारें भी गाते है

हाँ गाते है कुदरत के मौन नज़ारें भी गाते है

Originally published in hi
Reactions 0
433
Bhavna Thaker
Bhavna Thaker 28 May, 2022 | 1 min read

"हाँ गाते है कुदरत के मौन नज़ारें भी गाते है"


रव से रची कायनात की हर शैय से गुँजायमान होती है मधुर तानों की रवानियाँ, कान लगाकर सुनी है कभी कुदरत की शैतानियाँ..


आसमान की ओढ़नी से बहती है चाँद तारों की किलकारियां, और बजती हे बाँसुरी सी तान जब धरती की गोद से उठती है अलसाते कोंपलों की रानाइयां..

 

हाँ गुनगुनाती है तितलियों की रंगीनियाँ गुलों की शाखों से मिलकर गले और बजती है सरगम नवजात मेमने की मुस्कान से..


चिड़ीयों की चहचहाट महज़ शोर नहीं सा रे गा मा को परिभाषित करता सार है,तो नदियों के इठलाने पर महसूस होता निनाद आरती अज़ान का आगाज़ है..


समुन्दर की लहरों के पदचाप से गले मिलती आदित की रश्मियाँ भी ऐसे झिलमिलाते गाती है जैसे गाती है किसी शादी में दुल्हन की मेहंदी नारियाँ..


गोधुली की बेला में पगडंडी पर चलते गौशाला का गमन करती गैया की गरदन पर झूलती घंटियों की ध्वनि प्रार्थना का पर्याय लगती है.


भोर की बेला में उषा का निशा को अलविदा कहना उस पर आदित की रश्मियों से इश्क लड़ाते चाँद का डूबना जैसे राग भैरवी गुनगुनाता हो कोई..


मेघा की रिमझिम संग दामिनी का गरजना उफ्फ़ तौबा क्या महफ़िल सजाता है, हर सूर को बिंधते मल्हार रौनक जगाता है.. 


न..न मत समझो अरवल्ली के पर्वतों को मौन अडोल, हर कंदरा से उठती बयार का राग सुनों अपने मन से उठते शोर से साज़ मिलाते.. 


"देखा गाते है न ये सारे मौन नज़ारें आपकी और मेरी तरह संगीत के हर तराने" 

भावना ठाकर 'भावु' बेंगलोर

0 likes

Published By

Bhavna Thaker

bhavnathaker

Comments

Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓

Please Login or Create a free account to comment.