स्त्री का रुप धर लेती है

स्त्री

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Bhavna Thaker
Bhavna Thaker 13 Nov, 2020 | 1 min read
Prem Bajaj

सुकोमल तन की परत पर 

एक खाल चढ़ा वो लेती है 

एक कुमारीका जब 

स्त्री का रुप धर लेती है 


स्वप्न भरे नैंनों में 

शूल का हार गूँथ लेती है

होंठों पर प्रतिसाद दफ़न कर 

मौन का उपहार देती है


उर रश्मि की चिता जलाकर 

तिमिरमय दीप जलाती है

अश्रु की टकसाल चुनकर 

ममता करुणा लूटाती है


केश कलाप की कबरी बाँधे

लहराते पल्लू को दबोचे 

कमरपाश में भींचे

नारी कटिबद्ध होती है 


कंटकीत राहों पर चलते

शिथिल चरण में उर्जा भरती

अलसित नयन सार में 

कंजल नही चिंगारी सजती


अश्रु गिनते रात कटे पर

अनुपम स्मित का प्रात: बुनती

चुनौतियों के सवाल पर 

हिम्मत का हौसला चुनती है


एक कुमारीका जब

स्त्री का रुप धर लेती है

भावु।

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