"प्यारे दांपत्य की परिभाषा"
आज शादी की सालगिरह नही बस एसे ही दोनों के मन में एक दूसरे के प्रति संवेदना के सूर जगे। आज उन्होंने गाल थपथपाते पूछा थक तो नहीं गई ?
"कसम से पूरी ज़िंदगी की थकान उतर गई" और मैंने लिख दिए मन के कोने में छुपे भाव। लग्नवेदी की अग्नि को साक्षी मानकर उन्होंने थामी थी जब अपने मजबूत कर से मेरी नाजुक हथेली तब शंकित मन में डर की थी एक पहेली। अनजाने इंसान के संग नये सफ़र पर निकल तो पड़ी हूँ क्या पता राह होगी कंटीली या फूलदल सी मखमली।
अग्नि के इर्द-गिर्द फ़ेरे लेते हर फ़ेरे में वो आगे रहे कसम खाते मुझे संभालने की। आख़री फ़ेरे में मैं आगे थी वो पीछे , उनके सरमाये का वहन करने की जिम्मेदारी जो ली थी।
आज भी वो रहते तो पीछे ही है पर हाथ जोड़कर खड़े नहीं रहते मेरी रीढ़ को अपने हौसले से सहलाते हुए उर्जा का तेल सिंचते रहते है। मेरे लड़खड़ाते कदमों की बैसाखी बनकर गुनगुनाते रहते है पीछे से मेरे कानों में एक अकेला थक जाएगा मिलकर बोझ उठाना।
मैं आगे सही बस मुझको मान देने की ख़ातिर खुद पीछे चलते है लगाम जीवन रथ की थामें सारथी से सहज ओर सरल जीवन पथ बनाते।
हाँ सप्तपदी के सातों वचन उसने भी तो लिए थे मांग में सजाई चुटकी भर सिंदूर का मान रख रहे है। एक सूत्र में बंधे दो उर हाथों में हाथ लिए ज़िंदगी के सफ़र के हर पड़ाव पर एक दूसरे को समझते, संभालते निभा रहे है हर कसम, हर रस्म अदायगी की कोशिश में कोई किसीको गिरने नहीं देता।
उसका काँधा मेरा सलामत आशियाँ है और मेरा आँचल उनका सुकूनगाह। बिन बोले चेहरे की शिकन को पहचानने का हुनर सिख गए है दोनों, वो मेरी आँखें पढ़ लेते है, मैं उनका मिजाज़।
उन्होंने पत्नी तो कभी समझा ही नहीं आज तक प्रेयसी ही रही। मेरे एक-एक पल को खुशहाल लम्हों में ढ़ालने की उनकी कवायद उफ्फ़ मैं कायल हूँ उनकी। मेरे अश्रु को उन्होंने अपने सर चढ़ा लिया है मेरे होंठों की हंसी उनके जीवन का मकसद है अपनी हर तमन्ना मेरे कदमों में रख दी है।
ज़िंदगी के समुन्दर में सैलाब भी आते है वक्त की मार की मौजे डगमगा देती है मेरे हौसलों को पर कश्ती को किनारे लगा देता है मेरा मांझी पीछे से आकर हौले से अपनी पनाह में लेते।
एक सफ़र को सरल बनाने की जद्दोजहद नहीं करती मैं। उन पर मेरा यकीन निश्चिंत बनाता है मुझे चाहे कितनी तेज भागूँ दो मजबूत बाँहें मेरे आसपास मौजूद है मुझे थामने। जिस भरोसे के साथ मैंने खुद को सौंपा था एक अजनबी को वो भरोसा कायम है आज इतने सालों बाद भी।
दांपत्य की नींव रखी थी जिस भरोसे पर, यकीन के उस टीले पर टिकी है नींव हमारे प्यार की। ताउम्र मैं आगे चलूँगी वो पीछे ही ठीक है, आगे रहूँगी तभी आख़री पड़ाव में उनके हिस्से की मौत को मैं पहले गले लगाऊँगी उनके काँधे पर चढ़कर जाऊँगी अनंत की डगर पर एक नये सफ़र का रुख़ करते अगले जन्म में इंतज़ार करूँगी इस प्यारे साथी को पानेके लिए।
मेरा कुछ ना कहना फिर भी तुम्हारा सबकुछ समझ जाना मेरी ज़िंदगी में साँसे भरता है उनका ये कहना मेरी ज़िंदगी की सारी थकान हर लेता है।
#भावु।
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