"मुझे मेरा चाँद मिला गया"
इत्तेफ़ाक में यकीन करने वालों में से मैं हरगिज़ नहीं थी। पर कहते है न अल्लाह की मर्ज़ी के आगे इंसान को झुकना ही पड़ता है। पूरा महीना यक़ीदत के साथ रोज़े रखें, पाक मन से इबादत की शायद तभी ईद के दिन ही मुझे मेरा चाँद मिला।
उस दिन बराबर ट्रैन छुटने ही वाली थी की मैं रेल्वे स्टेशन में दाख़िल हुई। बोगी भी ढूँढनी थी, टिकट भी लेना था, तो भागंभागी में पता नहीं किसीसे टकरा गई, वह सौरी-सौरी बोलता रहा पर मेरा सिफ़ोन का दुपट्टा उसकी घड़ी में एैसे उलझ गया कि कितना झोर लगाया फिर भी निकल ही नहीं रहा था, फ़टने लगा तो वो बोला आराम से कहीं पर बैठकर कोशिश करते है निकल जाएगा। मेरी आँखों में आँसू आ गए, मैंने कहा मेरे पास इतना समय नहीं मेरी ट्रैन छूटने वाली है और मेरा जाना बहुत ज़रुरी है। स्लीवलैस ड्रेस थी बिना दुपट्टा रह नहीं सकती थी तो उस अजनबी ने मेरी द्विधा समझ ली, मेरे आँसू पौंछते घड़ी उतारकर मेरे हाथ में रखकर बोला please go Harry up मैं किसी भी किंमत पर ट्रैन मिस नहीं कर सकती थी, क्यूँकि अब्बू को हार्ट अटैक आया था और अम्मी को मेरी ज़रुरत थी, तो बिना कुछ सोचे दुपट्टे के साथ बंधी घड़ी लेकर ट्रैन में चढ़ गई,जैसे ही सीट पर बैठी ट्रैन चल पड़ी।
साँस हल्की होते ही दिमाग चलने लगा मैंने घड़ी को ध्यान से देखा तो आँखें चकरा गई हाय अल्लाह रिलेक्स कंपनी की इतनी महंगी घड़ी इस नाचीज़ अदना पर लुटाकर चला गया... तौबा यह मैंने क्या कर दिया किसीकी इतनी महंगी घड़ी उठाकर चली आई, क्या सोचता होगा वह की कैसी लड़की थी कि घड़ी लेकर चली गई। पर उस अजनबी ने चंद पलों में ही मेरे उपर जादू कर दिया था। उसकी गहरी आवाज़ में एक कशिश थी जो सीधी मेरे दिल में उतर गई। और उसके जिस्म की खुशबू मेरे तन-मन को सराबोर कर गई।उसकी अदाओं पर मर मिटा था मेरा दिल उसको सोचने पर दिल राजधानी की रफ़्तार से धड़क उठा, हाये कितना हैंडसम लड़का था, काश कि किसी और परिस्थिति में मिला होता।
ना नाम, ना पता, ना मोबाइल नंबर घड़ी वापस भी कैसे करुंगी? पर अब क्या हो सकता है। मैंने दिल को टपार दिया ओये पगले यूँ अजनबी से इतनी मोहब्बत अच्छी नहीं रुक जा, थम जा, ठहर जा। पर काश कभी उसे मिल पाऊँ तो थेंक्स भी बोल दूँ और घड़ी भी वापस कर दूँ। पर मुंबई जैसे शहर में दोबारा उसका मिलना संभव भी तो नहीं, उसके हसीन खयालों में ही सफ़र कट गया।
मैं अहमदाबाद पहूँच गई, अब्बू को मिली तो जान में जान आई डाॅक्टर से भी मिली अब अब्बू खतरे से बाहर थे और कुछ ठिक भी थे, मुझे देखकर अम्मी के चेहरे पर भी कुछ सुकून आ गया। मैं निलोफ़र तौफ़ीक अली की बेटी मुंबई में जाॅब कर रही हूँ, अम्मी-अब्बू की इकलौती संतान हूँ, अब्बू का मन नहीं था पर MBA पूरा करने के बाद मुंबई की एक बढ़िया कंपनी में जाॅब ऑफ़र हुई तो मैंने ज़िद करके अब्बू को मना लिया और चली गई मुंबई।
मैंने स्टेशन पर हुआ वाकिया अम्मी-अब्बू को सुनाया तो दोनो हंस पड़े और अब्बू बोले, कहीं घड़ी वाले कोे मेरी बेटी पसंद तो नहीं आ गई की इतनी महंगी घड़ी लूटाकर चला गया? मैं मन ही मन बोली अब्बू उसका तो पता नहीं पर आपकी बेटी को वो ज़रुर पसंद आ गया था, एक आह निकल गई बस।
पर इस बार मैं टाल नहीं सकी अम्मी-अब्बू बहुत ज़ोर देने लगे, बेटी शादी के लिए हाँ बोल दे तुझे अच्छा घर और शौहर मिल जाए तो हम दोनों की चिंता कम हो जाए। मैंने भी बोल दिया ठीक है आप लोग खोजबीन शुरु कीजिए कोई ढ़ंग का लड़का पसंद आएगा तो चली जाऊँगी ससुराल और क्या। और अब्बू के ठिक होते ही मैं वापस मुंबई आ गई।
उसके बाद लगभग ६ महीने बाद अम्मी का फोन आया की कुछ दिनों की छुट्टी लेकर आ जा तीन चार लड़को से तेरी शादी की बात चला रखी है, मिल लो और फिर पसंद आए तो आगे बढ़ेंगे। उम्र भी तो हो गई थी शादी की और अम्मी अब्बू की चिंता भी हल्की करनी थी तो सोचा चलो मिल तो लूँ क्या पता कोई पसंद आ भी जाए। पर सच कहूँ वह ट्रैन वाला दिमाग से हट नहीं रहा। काश कोई उसके जैसा मिल जाए। वैसे भी मुहर्रम चल रहे थे और शनिवार-रविवार और ईद की छुट्टी थी तो कुछ दिनों की ज़्यादा छुट्टी लेकर आ गई घर। हर रोज़ एक लड़के से मुलाकात होती रही, ठीक-ठाक थे सब एक दो दिल को भा भी रहे थे, बस आज आख़री लड़के से मिलना था। पर आज ईद थी तो मैंने अम्मी से कहा अम्मी आज नहीं, आज मुझे चाँद को करीब से देखना है, ईद मनानी है, रात में तरावीह की नमाज़ पढ़नी है और कुरान तिलावत भी उसके बाद रोज़ा खोलूँगी। पर अम्मी ने कहा अमन एक वीक के लिए ही इंडिया आया है परसों वापस दुबई चला जाएगा तो आज ही मिलना होगा।
पर सुन यह बंदा कुछ हटके है, उसने कहलवाया की वह किसीके घर में नहीं बल्कि किसी रेस्टोरेंट में मिलना चाहता है, वो भी सब घर वालों के सामने नहीं वह और तू अकेले में। हमने कहा ठीक है चलो इस अजीब इंसान से भी मिल लेते है।
उसने टेबल बूक करवाकर रेस्टोरेंट का नाम पता और टेबल नं. भेज दिया। शाम 7 बजे मैं एकदम झक्कास तैयार हो गई, ब्लैक ईवनिंग गाउन, लंबे डायमंड इयरिंग्स, स्ट्रैइट खुले बाल और हाई हिल में सज-धज कर आईने के सामने खड़ी रही तो खुद को पहचान ही नहीं पाई। हाय राम क्या मैं इतनी सुंदर हूँ। मन में एक ख़याल उभर आया...हहहमम तभी वह बंदा रोलेक्स लुटाकर चला गया। न जाने क्यूँ आज वो बार-बार याद आ रहा था। विचारों को ब्रेक लगाते मैं दिए हुए एड्रेस पर पहुँच गई। वेटर से टेबल नं पूछा वह टेबल खाली था, अभी तक वह आया नहीं था। मैं जाकर बैठ गई और मोबाइल पर गेम खेलने लगी। कुछ समय बाद एक मस्ती भरी आवाज़ ने मेरे कानों में गुनगुनाते कहा हाय नीलू ईद मुबारक हो। वही जानी-पहचानी सी गहरी आवाज़, वही उसके जिस्म की खुशबू कैसे भूल सकती हूँ, मैंने बिजली की गति से उपर देखा omg I can't believe वही स्टेशन वाला लड़का! हम दोनों एक दूसरे को देखते ही ६ महीने पीछे रेल्वे स्टेशन पर पहूँच गए, दोनों के मुँह से एक जैसे ही शब्द निकल पड़े omg तुम?
वह बोला देखा ज़िंदगी में इत्तेफ़ाक भी होते है, मैं तो उसे देखने मैं ही तल्लीन थी उसने चुटकी बजाकर मुझे जगाया मैं हक्की-बक्की सी खड़ी थी, हम दोनों को ही क्या बोले क्या नहीं कुछ समझ नहीं आ रहा था, तो उसने बड़ी अदब के साथ मुझे बैठने को बोला, में बैठ गई। बंदी तो ६ महीने पहले ही फ़िदा हो चली थी आज तो मन में लड्डू क्या मिठाई की पूरी दुकान फूट रही थी। थोड़ी इधर-उधर की बातें करने के बाद उसने कहा कुछ ऑर्डर करें? मैंने कहा चाँद निकले तो इफ़्तार हो न। उस पर आँख मारते वह बोला हमने तो अपने चाँद का दीदार कर लिया ज़ोरों की भूख लगी है यार। उस पर मैंने भी चुटकी ले ली और कहा हमने तो हमारे चाँद को 6 महीने पहले ही देख लिया था तो अब तो बिस्मिल्लाह बनता है, हो जाए काॅफ़ी और सैंडविच।
फिर तो सैंडविच और कोफ़ी की लज़्जत लेते दोनों घंटा भर बातें करते रहे। एक-दूसरे को जाना, पहचाना वह बार-बार मेरी आँखों में खो जाता था हम दोनों ही इस इत्तेफाक से खुश थे।
बहुत देर हो गई तो अम्मी का फोन आया तो अमन ने ही मेरे हाथ से मोबाइल लेकर अम्मी को बोला अम्मी जी don't worry अब से ये तूफ़ान आपकी नहीं मेरी ज़िम्मेदारी है, मैं शर्मा गई, उनकी अदाओं की कायल हो गई। उसने मेरे गाल पर थपकी लगाते पूछा क्यूँ ये बंदा चलेगा ना तुम्हारा bodyguard बनने के लायक है की नहीं?
मैं शरमाकर इतना ही बोली जब मेरे दुपट्टे ने तुम्हारी घड़ी को कुबूल कर ही लिया है तो ये अल्लाह की ही मर्ज़ी होगी, बाकी मैंने तो कभी सोचा भी नहीं था की इस जन्म में तुमसे कभी दोबारा मुलाकात भी होगी। और यूँ अलग-अलग दिशा से आए हुए दो हमसफ़र साथ-साथ एक नये सफ़र की ओर कदम रखने हाथों में हाथ थामें निकले रेस्टोरेंट से बाहर और आसमान के ईद वाले चाँद को गवाह रखते चल पड़े अपनी मंजिल की ओर। शुक्र है अल्लाह का यूँ मुझे मेरा चाँद मिल गया ईद के ही दिन।
भावना ठाकर 'भावु' बेंगलोर
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