सांसारिक सुख की परिभाषा क्या है तन का भोगना ? शारीरिक जरुरत या एक दूसरे के प्रति सम्मान, सौहार्द या समर्पित भावना ?
क्यूँ चार बच्चों की माँ प्रेम के नाम पर मुँह मचकोड़ते सिकुड़ जाती है। क्या प्रेम के प्रतिक नहीं होते बच्चें उनके, स्त्री के लिए प्रेम की चरम मौन संवाद है, अधिरता का रसपान नहीं। समाज में घट रहे शारीरिक शोषण के किस्से छप जाते है पत्रिकाओं में। बकायदा घट रही प्रताड़ना पगली कहाँ छपवाएं।
उन्माद के पलों में एक ही क्रिया को जीते है दो जीव, मिलन साधने हेतु , फिर क्यूँ भाव एक नहीं होते।
स्त्री डूब जाती है प्राकृतिक क्रिया की चरम को पाने रंभा सी भार्या संपूर्ण समर्पित सी ,वो पल पूजा से महसूस करती स्त्री तन-मन से अत्यंत करीब होती है अपने आराध्य के प्रति...!
विपरीत कोई कैसे मासूम को छल जाता है महज़ काम पूर्ति का साधन समझते दीये की लौ बनकर शीत मोम को पिघलाते हवस की आग में जलाते।
हाँ दैहिक आग को एक यज्ञ समझता है तो एक महज़ कामपूर्ति।
स्त्री तुम्हारे भीतर तलाशती सत्य की खोज में मनाती है उत्सव दैहिक पराकाष्ठा का और तुम भावहीन से वस्तु सी भोग लेते हो..!
स्त्री नहीं कोई दिखावा करती बाँहें फैलाती आह्वान देती है तुम्हें अपने भीतर संजोने की संमति का। वो पल स्त्री के लिए मानो शाम के साये में गंगा की आरती में असंख्य दीपों की पवित्र ज्योति से उठती रोशनी से होते है।
ये नज़ारा भरता है जैसे वेगीला उफ़ान गंगा की लहरों में बस कुछ वैसे ही..!
तुम्हारे प्रति विकार या आकर्षण से परे थाम लेती है तुम्हें अपने भीतर समूचे अपने अस्तित्व के संग एकाकार करते..!
तुम सामान से हटा देते हो चरमोत्कर्ष के छंटते ही, नारी जीती है उन पलों को ,
एहसासो का तेल सिंचे लौ को प्रज्वलित सी ताज़ा रखती है, प्रेम भोग्य नहीं पूजा का दूजा नाम है स्त्री के लिए। स्त्री को चाहत की कला से आत्मसात करो सम्मान की हकदार है महज़ काम पूर्ति का साधन नहीं। फिर चार बच्चों की अम्मा भी प्रेम के नाम पर शर्माते खिलखिलाएगी सिकुड़ेगी नहीं।
भावु॥
Comments
Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓
Bahut acha lekh
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