आत्मसम्मान

आत्मसम्मान

Originally published in hi
Reactions 0
561
Bhavna Thaker
Bhavna Thaker 28 Nov, 2020 | 1 min read
Prem Bajaj

"आत्मसम्मान"

अस्पताल में अफ़रा तफ़री मच गई एक्सिडेंट में बहुत बुरी तरह ज़ख़्मी कोई पेशन्ट आया था। दीप्ति ने देखा वो पेशन्ट शशांक था जिससे दीप्ति कभी बेइन्तहाँ प्यार करती थी, अपनी जान से ज़्यादा चाहती थी। बेशक शशांक को इस हालत में देखकर दीप्ति का दिल चर्रा उठा पर लहू-लुहान पूरी तरह से ज़ख़्मी शशांक के लिए दीप्ति के मन में रत्ती भर भी अनुकंपा नहीं जन्मी। नो डाउट शशांक के प्रति मन में नफ़रत का बिज था पर दीप्ति ने उसे पनपने नहीं दिया, एक आम पेशन्ट के प्रति जैसे अपना फ़र्ज़ निभाती है वैसे ही दिन रात अपनी नर्स की ड्यूटी बजाती रही।

तो क्या हुआ की शशांक ने रीना के साथ अफेर किया, तो क्या हुआ की शशांक ने धोखा दिया, तो क्या हुआ कि तलाक को तीन साल हो गया उन सारी बातों को एक नर्स और पेशन्ट के रिश्ते संग नहीं तोल सकती। दीप्ति ने सोचा जब बिना कोई शिकायत के उस वक्त भी शशांक को शादी के रिश्ते से आज़ाद कर दिया था तो अब कैसी शिकायत जब अतीत को बहुत पीछे छोड़ आई हूँ मैं अपना फ़र्ज़ कैसे भूलूँ। 

और अपने फ़र्ज़ के प्रति समर्पित दीप्ति की सुश्रृषा से चार दिन बाद शशांक होश में आया तब डोक्टर वर्मा ने कहा हैलो यंग मेन यू आर सो लकी हमारी काबिल नर्स दीप्ति को धन्यवाद कहें जिसने दिन रात आपकी सेवा करके आपकी जान बचाई। शशांक दीप्ति को देखकर शर्मिंदा हो गया और बोला बोला डोक्टर इस देवी को थैंक्यु बोलकर अपमान करना नहीं चाहता, इनकी सेवा और सौहार्द भाव के आगे नतमस्तक हूँ। 

दीप्ति ने पंद्रह दिन तक शशांक की जी जान से सेवा की, हाँ कभी-कभी अंग से अंग की छुअन से दोनों के दिल में खलबली मच जाती थी पर ना दीप्ति ने ज़ाहिर होने दिया ना शशांक ने जताया। आज शशांक को अस्पताल से छुट्टी मिलने वाली थी आख़री ड्रेसिंग करके दीप्ति जाने लगी तो शशांक ने दीप्ति का हाथ थाम लिया और बड़े प्यार से पास बिठाया। और दीप्ति के काँधे पर सर रखकर सौरी कहते हुए छोटे बच्चे कि तरह रो पड़ा। सौरी दीप्ति मैंने तुम्हारे साथ बहुत अन्याय किया फिर भी तुमने मेरी इतनी सेवा की और मौत के मुँह से बचाया।

तुम जैसे खरे सोने को पहचान नहीं पाया और पित्तल के पीछे पागल हुआ, दीप्ति मैं माफ़ी के काबिल तो नहीं पर हो सके तो मुझे माफ़ कर दो तुम्हारा दिल दु:खाने की सज़ा ही उपर वालें ने दी है मुझे। तुम तो बिना कोई शिकायत किए मुझे आज़ाद करके चली गई पर रीना को सिर्फ़ मेरी दौलत में रस था तो जो हाथ आया लेकर फ़रार हो गई। मैं तो उस काबिल भी नहीं था की तुमसे माफ़ी मांग कर वापस बुला सकूँ पर शायद भगवान हम दोनों को वापस मिलाना चाहता है तभी कोई मुझे इसी अस्पताल में पहुँचा गया। सोचो तुम एक स्त्री हो कैसे पूरी ज़िंदगी अकेले काटोगी क्या हमारे रिश्ते को एक और मौका नहीं दे सकती।

दीप्ति असमंजस में थी शशांक का एक छोटा सा शब्द सौरी दीप्ति के नाजुक मन को पिघला भी रहा था तो दूसरी ओर आत्मसम्मान अपना दायरा लाँघने को तैयार नहीं था। दिल चाह रहा था सब भूलकर शशांक को माफ़ कर दिया जाए, पर मन कह रहा था क्या पता कल कोई दूसरी रीना भा जाए और वापस दीप्ति खिलौना बन जाएं। 

एक झटके में कमज़ोर ख़याल को दिमाग से अलविदा कहते दीप्ति खड़ी हो गई और बोली कैसे दोगले इंसान हो मिस्टर शशांक, रीना से रिश्ता बनाते वक्त और मुझे तलाक देते वक्त ये ख़याल नहीं आया कि मैं औरत हूँ अकेली पूरी ज़िंदगी कैसे काटूँगी। आज जब रीना आपको छोड़कर चली गई और ज़िंदगी में वापस किसी औरत की कमी महसूस हुई तो मेरी की हुई सेवा का बदला अहसान जताते चुकाना चाहते हो। पर सुन लो तो क्या हुआ की मैं स्त्री हूँ, वो भी अकेली पर मैं 21वीं सदी की नारी हूँ बिना किसी मर्द के सहारे के भी ज़िंदगी जी सकती हूँ, और वो आपने ही मुझे सिखाया है तो अब मैं किसीको हक नहीं देती अपनी ज़िंदगी से खेलने का। अगर टूटकर किसीको चाह सकती हूँ तो आत्मसम्मान की ख़ातिर ठुकरा भी सकती हूँ। 

सौरी मिस्टर शशांक आप ख़ांमख़ाँ भावुक हो रहे है, मैं कोई खिलौना नहीं कि आप जब जी चाहे खेलो और जब जी चाहे तोड़ दो। मैंने जो किया वो प्यार या चाहत में बावली बनकर नहीं किया आपकी जगह कोई और होता तो भी अपना फ़र्ज़ ऐसे ही निभाती ये मेरी ड्यूटी है, सो प्लीज़ डोन्ट बी इमोशनल अपने आप को संभालिए। मैं आपके डिस्चार्ज के कागज़ात तैयार करवाती हूँ आज आपको छुट्टी दी जा रही है। और दीप्ति अपने आत्मसम्मान को ज़िंदा रखते हुए एक ठोस निर्णय लेकर एक कमज़ोर इंसान की खोखली चाहत को ठोकर मार कर गर्वित गरदन उठाए आगे बढ़ गई।

(भावना ठाकर बेंगलोर)#भावु

0 likes

Published By

Bhavna Thaker

bhavnathaker

Comments

Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓

Please Login or Create a free account to comment.