Anujeet Iqbal

anujeet

Writer, Painter and Seeker

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वचन
वचन हे प्रियतम तुम्हारा अघोर रूप किसी सर्प की भांति मेरे हृदयक्षेत्र में कुंडली मार बैठ गया है और मैं वैराग्य धारण करने के पश्चात प्रेमविह्वल हो रही हूं गेरुए वस्त्र त्याग कर कौमुदी की साड़ी ओढ़ कर तृष्णा के ज्वर से तप्त मैं खड़ी हूं तुम्हारे समक्ष चंद्र की नथनी डाल कर तुम्हारी समस्त इंद्रियां हिमखंड की भांति स्थिरप्रज्ञ हैं लेकिन दुस्साहस देखो मेरा तुमसे अंकमाल होते हुए प्रक्षालन करना चाहती हूं तुम्हारी सघन जटाओं का मोक्ष के लिए मुझे किसी साधना की आवश्यकता नहीं समस्त कलाओं का रसास्वादन करते हुए मेरी कलाई पर पड़ा तुम्हारे हाथ की पकड़ का नील काफी होगा मुझे मुक्ति दिलाने के लिए वचन देती हूं प्रियतम वो दिन अवश्य आएगा अनुजीत इकबाल

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by anujeet

कविता

11 Feb, 2022