Anujeet Iqbal
Anujeet Iqbal 11 Feb, 2022
वचन
वचन हे प्रियतम तुम्हारा अघोर रूप किसी सर्प की भांति मेरे हृदयक्षेत्र में कुंडली मार बैठ गया है और मैं वैराग्य धारण करने के पश्चात प्रेमविह्वल हो रही हूं गेरुए वस्त्र त्याग कर कौमुदी की साड़ी ओढ़ कर तृष्णा के ज्वर से तप्त मैं खड़ी हूं तुम्हारे समक्ष चंद्र की नथनी डाल कर तुम्हारी समस्त इंद्रियां हिमखंड की भांति स्थिरप्रज्ञ हैं लेकिन दुस्साहस देखो मेरा तुमसे अंकमाल होते हुए प्रक्षालन करना चाहती हूं तुम्हारी सघन जटाओं का मोक्ष के लिए मुझे किसी साधना की आवश्यकता नहीं समस्त कलाओं का रसास्वादन करते हुए मेरी कलाई पर पड़ा तुम्हारे हाथ की पकड़ का नील काफी होगा मुझे मुक्ति दिलाने के लिए वचन देती हूं प्रियतम वो दिन अवश्य आएगा अनुजीत इकबाल

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by anujeet

11 Feb, 2022

कविता

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