"पा...नी…"
"अम्मू! नोनू को पानी पिलाओ। पहले नोनू के अस्पष्ट स्वर के बाद मम्मा की आवाज भी अम्मु के कानों पहुंची।
"मैं होमवर्क कर रही हूं।"
"पर नोनू को प्यास लगी है न बेटा।"
"तो! मैं क्या करूं?"
"अम्मू तुम आजकल बात नहीं सुनती हो।"
"आप भी कहां सुनती हो मेरी बात, आप बस नोनू से प्यार करती हो।"
"नोनू छोटी है न बेटा, और फिर…." मम्मा की आंखों में नमी थी जिसे अम्मू समझ कर भी नहीं समझ पाई।
"हां! वही! हमेशा की तरह! और फिर…"
"अम्मू तुम जानती हो न नोनू अपनी देखभाल खुद नहीं कर सकती, उसे हर वक्त हमारी मदद की जरूरत रहती है, अच्छा बताओ अगर मैं कभी चली गई तो तुम नोनू को पानी भी नहीं पिलाओगी?" मम्मा ने नोनू की गर्दन सीधी करते हुए कहा।
"ओह! तो अब आप मार्केट भी जाओगी? वहां से चोकलेट और खिलोने भी नोनू के लिए ही लाना। मेरे लिए कभी कुछ मत लाना।" अम्मू ने उपेक्षा से मुंह घुमा लिया।
"पा...नी…" अस्पष्ट स्वर ने फिर अम्मू का ध्यान अपनी ओर खींचा और उसने पानी का गिलास नोनू के मुंह के लगा दिया।
"अरे हां! बाबा! ले पानी पी।"
"देख लो मम्मा आपके जाने के बाद भी नोनू प्यासी नहीं है।" कहते हुए अम्मू ने दीवार पर लगी मम्मा की तस्वीर की ओर देखा तो उसे मम्मा की मुस्कान में एक सुकून दिखाई दिया।
Comments
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बच्चों में मां का पक्षपात ढूंढती आंखे आश्चर्य चकित करते अंत को पढ़कर भीग जाती हैं ।
जी शुक्रिया
आँखें नम हो गई पढ़कर
Bahut bhavuk
दिल को छू गई आपकी कहानी
मर्मस्पर्शी
बहुत सुन्दर और मर्मस्पर्शी..!
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