बरसों रमिया ने जिसकी राह तकी आज वह ख़ुद ही उसके दरवाज़े तक आ गया था। वह चेहरे पर वही स्मित हास्य लिए था जो रमिया ने दशहरा मेले में रावण दहन के समय उसके मुख देखा था। अपने क्षेत्र के विधायक रघुनाथ के लिए रमिया ने जूठे बेर तो नहीं जुटाए थे, हां! अपने दो बीघा खेत में उगाए मोटे धान से भात जरूर बनाया था। अपने एल्युमिनियम के बर्तन भी उसने दो बार मांज लिए थ मगर विधायक जी का भोजन और बर्तन तो उनका लवाज़मा साथ ही लाया था। रमिया को तो बस वह भोजन परोसना भर था। साबुन से हाथ धुलवा विधायक की पीए ने जैसे ही उसके हाथों में भात से भरा करछुल दिया कैमरों की फ्लैश लाइट चमक उठी। "देखिए आज शबरी के घर राम आए हैं।" एक न्यूज़ चैनल की एंकर चीख रही थी और उसका चीखना सुन रमिया सोच रही थी, "क्या सच में शबरी के घर राम आए हैं!"
अंकिता भार्गव
संगरिया / राजस्थान
Comments
Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓
बेहतरीन लघुकथा। गहरा तंज ।
शुक्रिया सर
बेहतरीन लघुकथा
शुक्रिया संदीप
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