गांव में पंचायत के चुनाव की सरगर्मियां शुरु हो गई थीं। इस बार सरपंच की सीट महिला के लिए आरक्षित थी और पूर्व सरपंच सोहनलाल की पत्नी की उम्मीदवारी तय थी। सोहनलाल इस संदर्भ में सारी गोटियां बैठा चुके थे, बस घोषणा बाकी थी। सोहनलाल पार्टी ऑफिस पहुंचे मगर वहां रमिया को देख हैरान रह गए। दिन के उजालों में तो सोहनलाल कभी रमिया को अपने आसपास देखना भी पसंद नहीं करते थे।
"रमिया इस समय यहां कैसे आना हुआ?" अपनी असहजता छुपाने का प्रयास करते हुए सोहनलाल ने पूछा। रमिया ने अपना मोबाइल सोहनलाल की ओर बढ़ा दिया। मोबाइल स्क्रीन पर उभरती तस्वीरों को देख सोहनलाल के चेहरे का रंग उड़ गया। "क्या चाहती हो?" उन्होंने रमिया से पूछा। सोहनलाल के प्रश्न का जवाब रमिया ने अपनी चिरपरिचित मोहिनी मुस्कान से दिया मगर आज वह मुस्कान रहस्यमयी थी। सोहनलाल भी खिसियानी हंसी हंस दिए हारे हुए जुआरी की तरह सोहनलाल उठे और सरपंच पद के उम्मीदवार की घोषणा कर आए। गांव वाले घोषणा सुनकर हैरान थे क्योंकि उम्मीदवार सोहनलाल की पत्नी नहीं रमिया थी।
अंकिता भार्गव
संगरिया(राजस्थान)
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उत्कृष्ट लघुकथा
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