बृहन्नला

मयंक या माया... फर्क बस सोच का

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Ankita Bhargava
Ankita Bhargava 15 Apr, 2021 | 1 min read




'थैंक्स फ़ॉर कॉलिंग माया...माया को कॉल करने के लिए धन्यवाद...माया अभी व्यस्त है...कृपया थोड़ी देर बाद कॉल करें…'  रात गहराती जा रही थी और उसका फ़ोन भी नहीं लग रहा था। सुहानी को अब उसकी फिक्र होने लगी थी। अपनी परेशानी किससे कहती प्रतीक की आंखों में तो पहले ही हज़ारों शिकायतें थीं। इतनी निराशा तो उसे उस दिन भी नहीं हुई थी जब मयंक उसकी गोद में आया था। मयंक की परवरिश सुहानी के लिए किसी चुनौती से कम नहीं रही। उसकी सुरक्षा की चिंता तो उसे चैन से बैठने भी नहीं देती थी। हर समय डर लगा रहता था कि कहीं…कहीं कोई उसके बच्चे को छीन कर न ले जाएं। कोशिश तो उन्होंने भी कम नहीं की थी मगर सुहानी की ममता हर बार भारी पड़ी।   परायों से तो जंग जीत ही ली थी सुहानी ने मगर आज अपने ही खून से हार गई। वह तो खुद को एक कामयाब मां माने बैठी थी। एक ऐसी मां जिसने ईश्वर की दी अपूर्ण कृति का तिरस्कार करने की बजाय जी जान से उसे संवारने की कोशिश की। मगर सच तो कुछ और ही था। सहेलियों के व्हाट्सएप ग्रुप में मयंक का बेली डांस का वीडियो और उस पर अपनी उनके भद्दे कमेंट्स देख सुहानी का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच गया। और वह गुस्सा मयंक के गाल पर निशान बनाते हुए उसके अपने भी कई भ्रम तोड़ गया।   "मम्मा प्लीज़! जीने दो मुझे। तुम खास हो! तुम खास हो! कह, कह कर आपने मेरा जीना हराम कर दिया है। नहीं बनना मुझे खास मुझे एक नोर्मल ज़िंदगी दे दो। नहीं बनना मुझे मयंक, मुझे माया की तरह रहना पसंद है। आप मानो या न मानो पर मेरा सच यही है। अब या तो आप मेरा यह स्वीकार कर लो या मुझे शांति से मर जाने दो।" मयंक गुस्से में चिल्लाता हुआ घर से बाहर निकल गया और सुहानी हैरान सी अपनी गलती ढूंढ़ती रही।

   "सुहानी!" प्रतीक की आवाज सुन सुहानी ने पीछे मुड़ कर देखा। प्रतीक के साथ मयंक भी खड़ा था। स्कर्ट टॉप में बड़ा प्यारा लग रहा था। सुहानी ने उसकी ओर अपनी बाहें फैला दीं और...और मयंक उनमें समा गया। सुहानी मुस्कुरा दी! आज उसने भी अपनी सोच के ताले खोल कर अपने बच्चे को उसकी असली पहचान देना मंजूर कर लिया था। 


  

 


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