इवनिंग ड्यूटी के समय डॉ. श्रुति का मन बहुत उदास था, सुबह बहुत कोशिश के बाद भी वे हादसे में घायल महिला की कोख में पल रही बच्ची को नहीं बचा सकीं थीं। बच्ची के पिता और दादी का रो रो कर बुरा हाल था। उनकी हालत याद कर श्रुति को बच्ची की मां का सामना करने के लिए भी हिम्मत जुटानी पड़ रही थी। मगर वार्ड में जाकर उन्होंने देखा कि वह महिला दुखी तो थी मगर शांत थी। "मुझे माफ कर देना मैं तुम्हारी बच्ची को नहीं बचा सकी।" डॉ. श्रुति ने महिला का दुख बांटने की कोशिश की।
"वह अपने खाते में सांस लिखा कर लाई ही नहीं थी फिर आपका क्या कसूर।"
"फिर भी एक मां होने के नाते मैं तुम्हारा दर्द समझ सकती हूं।"
"मेरी तीन बेटियां और भी हैं डॉक्टर साहिबा, मैं उन्हें ठीक से पाल सकूं वही बहुत है।" महिला की आवाज किसी गहरे कुएं से आती प्रतीत हो रही थी।
"तुम्हारे पति और सास काफी दुखी हैं।" श्रुति अपनी जिज्ञासा न रोक पाई क्योंकि अब तक उन्होंने लोगों को इतना दुखी लड़के के लिए होते देखा था लड़की के लिए नहीं "हां! उनका दुख मुझसे भी बड़ा है। उनके घर से एक बेडनी कम हो गई।" कहते कहते वह महिला फूट फूट कर रो पड़ी।
अंकिता भार्गव
संगरिया (राजस्थान)
Comments
Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓
भावपूर्ण
बेजोड़ कथ्य और कथानक । बेहतरीन लेखन ।
शुक्रिया संदीप जी
शुक्रिया अनिल सर
Please Login or Create a free account to comment.