Titleगजल

अपनों से जुड़ाव जीवन का अहम हिस्सा है।

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पेपर विफ्फ हेतु...

स्वरचित गज़ल


कोई ऐसी गजल लिखूंगी मैं,जो दुआ सी हो गरीब की ।

नई दास्तां कहती रहूँ,खुलते हुए नसीब की।।



पुष्पित कुसुम, नव दीप ले,अर्चन करूं लहरों पे मैं।

पावन सरित देखें नयन,छवि आंकें तट के करीब की।।



माथे सजे टिकुली सदा,पिया नाम की जगमग करे।

रहमत करे वो जो जानता आदत मेरे रकीब की।।



गुलिस्तां मेरा महके सदा,पाखी मेरे उड़ते रहें।

कंटक-चुभन का न भास हो,बातें न हों सलीब की।।



अपने मेरे सरताज हों,उनके जुदा अंदाज हो।

गलियों में भी चर्चा करें ,मुझ जैसे खुशनसीब की।।


  ______

स्वरचित-डा.अंजु लता सिंह गहलौत, नई दिल्ली



















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