स्वरचित कविता
शीर्षक-"सर्द हवाएं:गरम चाय"
शीत ऋतु का हुआ आगमन,पुलकित है सबका तन-मन
चलने "लगीं हैं सर्द हवाएं,सोचें हरदम पी लें चाय
कुछ गरमाहट आए तन में,उथल-पुथल मचती है मन में
शीत लहर करती है नर्तन,थर-थर कांप रहा है तन
फिर भी मौसम की मस्ती में ,डूबे हैं सब हुए मगन
मफलर,स्वेटर,शॉल लुभाए, इनके बिन अब चैन न आए
गरमागरम चाय की प्याली,हमें लगे मस्त मतवाली
सुख उपजे जब घूंट भरें,तुलसी,अदरक ग़ज़ब करें
चाय बनाकर शाम सवेरे हाजिर हो जाती घरवाली
प्राची से लो झाँक रहा है,धूप टूक अपरूप
खिड़की के पट खोल दिये हैं,निखर गया वसुधा का रूप
सुबह सैर को निकले हम,सर्द हवाएं कांपना तन
खिली धूप में टहले जब हम, झूम उठा मुरझाया मन
मिले राह में मित्र पुराने,सुने सुनाए खूब फसाने
कस्बे के नुक्कड़ पर जाकर,बैठ गए सारे मिलकर
कुल्हड़ वाली गरम चाय का लुत्फ उठाया फिर जमकर
मित्र-मिलन की गरमाहट और जालिम शीत-लहर की ठंड
मिल बैठीं जब दोनों बातें,दिल में मचली अजब उमंग
पतझड़ का आगाज़ हुआ है,शीत-समां सरताज हुआ है
पाखी चहक रहे पेड़ों पर,मधुरिम सा अंदाज हुआ है
तरुओं से गिर पीत पत्तियां,भू पर नाच रहीं मतवाली
बेपरवा हैं सर्द हवा से,गिरकर बजा रही हैं ताली
ऐसी सर्द हवाओं को तो प्यार करूँ मैं जी भरकर
संग चाय की चुस्की हो तो दीद करूँ मैं जीवन-भर
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रचयिता- डॉ.अंजु लता सिंह गहलौत,नई दिल्ली
(सर्वाधिकार सुरक्षित)
ई-मेल-- anjusinghgahlot@gmail.com
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