#स्वरचित कविता-
शीर्षक-"मां कहते ही"
जीवन अति सुखकर लगता है-
मन मोहक,मधुकर लगता है,
मां कहते ही मेरे तन को-
बेटी बन बेहतर लगता है.
पंचतत्व का है ये पिंजरा-
मां के लाड़-प्यार से निखरा,
रखा उदर में कलित-कली को-
चहुं ओर फिर सौरभ बिखरा.
कितने जतन किये हैं उसने-
पूरे किये सजीले सपने,
तपी धरा सी ही मुस्काई-
दिये सभी सद्गुण भी अपने.
नित्य नमन करती जब उनको-
रोज निभाती अपने प्रण को,
सत्य,शिवम,सुंदर लगता है-
मां कहते ही मेरे मन को-
जीवन अति सुखकर लगता है.
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स्वरचित-
डा.अंजु लता सिंह,नई दिल्ली
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