मस्त मौसम(गीत)

मानसून आते ही प्यार भरे दिल उमंगों से भरपूर हो जाते हैं.

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#स्वरचित,मौलिक, अप्रकाशित एवंअप्रसारित गीत

शीर्षक-"मस्त मौसम"


मस्त मौसम है जवां,खुशनुमा हुआ है समां

फुहारें गिरती हैं थम-थम के उमंगें हैं रवां


बादलों ने भी छेड़ दी है बूंदों की सरगम

टेरती कोकिला,दादुर भी ढाएं जुल्मो सितम

थिरक रहा है मेरा सांवला सलोना बदन

नाच उट्ठी है धरा,झूमता है ये सावन

ऐसे में जाके बस गए क्यों दूर बैरी सजन?

मयूरा नाच रहा मन का,गुनगुनाए पवन

ऐसे में आके तुझे ढूंढूं कहां, ढूंढूं कहां?

मस्त मौसम है जवां, खुशनुमा हुआ है समां

फुहारें गिरती हैं थम-थम के उमंगें हैं रवां



दूर से सोचूं उन्हें पास अपने पाती हूं

हूक दिल में उठे है फिर भी दबा जाती हूं

नैन रोते हैं मेरे याद उनकी आती है

उनसे मिलने की मेरी आस थमी जाती है

दूर होंगे न जाने कैसे मेरे सारे भरम

कब मिलेंगे न जाने मेरे वो दीवाने सनम.

सिलसिला जाके रूकेगा ये हाय जाने कहां

मस्त मौसम है जवां खुशनुमा हुआ है समां

फुहारें गिरती हैं थम-थम के उमंगें हैं रवां



झूमके चलती हवा खुशनुमा महकती हुई

रांझे रोती है तेरी हीर ये बहकती हुई

बोल मधुरिम मेरे होठों पे खिलें फूलों से

बात करती हूं कली,पात,पाखी, झूलों से

रेशमी जुल्फ मेरे गालों पे ढाती हैं सितम

बाग में आके मिलो होए सुहाना संगम

हो न रूसवाई मेरी,दर्द न दे जाने जहां

मस्त मौसम है जवां,खुशनुमा हुआ ये समां

फुहारें गिरती हैं थम-थम के उमंगें हैं रवां



कातिलाना भंवें पिया की हैं कटारी सी

तनी रहें मेरे जिगर पे वो सवारी सी

बहते पानी में डोलती है नेह की नैया

किनारा खोजती ,भंवर में फंसी है दैया

थमे बरखा, पिया घर आएं ,न फिर जाने दूं

मेघ मल्हार सुनाएं उन्हें सुनाने दूं

मेरे सरताज राज खोलती है अब ये जुबां

मस्त मौसम है जवां,खुशनुमा हुआ ये समां

फुहारें गिरती हैं थम-थम के उमंगें हैं रवां


स्वरचित

डा.अंजु लता सिंह

नई दिल्ली


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