विकारों का विसर्जन

विकारों में सभी सडी गली परंपराए ,दुर्गुण आदि त्याज्य हैं

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Dr. Anju Lata Singh 'Priyam'
Dr. Anju Lata Singh 'Priyam' 21 Sep, 2024 | 1 min read

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रचयिता- डा. अंजु लता सिंह गहलौत, नई दिल्ली









स्वरचित कविता

शीर्षक-" विसर्जन विकारों का"


कितने पावन भाव से हम लाते हैं घर में गणपति

सजाते हैं मां अंबे का दरबार

फिर भी नियत समयोपरांत करते हैं इन्हें खुद से विलग

बहा ले जाती हैं इन्हें विसर्जन के दौरान अपने साथ तेज जलधार

कहते हैं, यही करती हैं सबका उद्धार

क्या यही है दिव्य प्रतिमाओं से हमारा अनुपम प्यार?

चलो अब बुलाती है नई दिशाएं ,बदलते हैं कुछ पुरातन परंपराएं

विसर्जित करें अपने दूषित विकार,

दिनों दिन हुआ है अब जिनका विस्तार

देवी सी कन्या का नित-प्रति शोषण

बेबस तन भूखा न मिलता है भोजन

खाते हैं तर माल बंगलो में कूकर

दुष्ट न बदलें कभी पाषाण छूकर

कृत्रिम सरोवर में खिलते कमल हैं

कीट-पतंगों के दिखते न दल हैं

गाय की रोटी तवे पर न फूले

 प्रभु नाम का टूक रखना भी भूले

विकारों का जीवन में जमघट लगा है

 विसर्जित करो भाव मन में जगा है

जमा न करो घर में कूड़ा और करकट

दीनों को दे दो वसन,खाद्य झटपट

रह जाएगा सारा सामां यहीं पर 

दानी बनो नाम होगा जमीं पर

मन के कपट को फेंको निकालो,मिथ्या ना बोलो खुद को संभालो समर्पित करो सारे पापों की गठरी,कर्मोंकी चादर बुनोअब सुनहरी

संचित जो ज्ञान है प्रसरित करो, मन के गुमान को निस्सृत करो 

खुद भी जागो और सबको जगाओ 

विसर्जन विकारों का करो और करो

बुजुर्गों से बातें खुलकर करो

खुद को पहचानो, खुद पर मरो

भगवान को भूलना ना कभी 

इसी में हैं शामिल पंचतत्व सभी

भू , गगन ,वायु अग्नि और नीर

इनसे ही मिलकर बना है शरीर

विसर्जन में सारे यही साथ देंगे 

विकारों के तेरे यही मात देंगे.

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Dr. Anju Lata Singh 'Priyam'

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