विषय-गुजरते पल
स्वरचित कविता
शीर्षक- "गुजरते पल"
'गुजरते पल' लुभाते हैं-
न जाने क्यों रुलाते हैं?
बसे परदेस में बालक-
हमें निश-दिन बुलाते हैं.
वो बीते दिन सुखद लगते-
मेरे सपनों में हैं जगते,
भले ही तिक्त हों कितने-
मगर फिर भी मधुर लगते.
कहें सब आज में जी लो-
मजे जीवन के कुछ ले लो,
चलो संघर्ष के पथ पर-
जीने दो और खुद जी लो.
वो जीवन गांव का प्यारा-
खुला आंगन और चौबारा,
मिल-जुल रहते थे सारे-
दमकता नेह-उजियारा.
गुल्ली डंडे का वो खेला-
रौनकों वाला वो मेला,
घी में चुपड़ी गरम रोटी-
भरा वो साग का बेला.
वो पल गर पास आ जाएं-
ये तन और मन निखर जाएं,
प्रदूषण से रहित परिवेश-
सुख की खुशबू बिखर जाए.
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स्वरचित-रचयिता-डा.अंजु लता सिंह, नई दिल्ली
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