स्वरचित लघु कथा-
शीर्षक-"तमन्ना"
डाॅक्टर सूरज के मन में बरसों से अपने बाबा से मिलने की तमन्ना थी .मां तो शिशु की असलियत जानकर सदमे से ही चल बसी थी.
बाबा उसे चोरी छिपे, सीने से लगाए, भारी मन सेअपने गांव चले आए थे। अपने दुधमँहे बालक की देखभाल के लिये खेतिहर मज़दूर सोहन और झुमरी उन्हें ईश्वरीय वरदान की तरह ही मिल गए थे।
उसे वह मनहूस दिन याद आया,जब उसके बारे में भनक पड़ते ही किन्नर बस्ती के कुछ लोगों की उग्र भीड़ ने अचानक उनके घर पर धावा बोल दिया था और दसवीं में पढ़ने वाले सूरज को उसके बाबा के मजबूत हाथों की पकड़ से सबने निर्ममता से खींच लिया था.
बाबा के गिरते स्वास्थ्य की खबरें उसके कानों तक अक्सर पहुँचा तो करती थीं,लेकिन वह विवश सा,मन मसोसकर रह जाता था ।
किन्नर बस्ती की कबूली काकी ने उसे ममताभरा हौसला देकर पढ़ा लिखाकर बड़ा डाॅक्टर बना दिया,मगर खुद कैंसर से जूझते हुए दुनिया से चली गईं।
अस्पताल में मरणासन्न बाबा के सूजन से वेदनाग्रस्त अंगों को सहलाते हुए वह भावुक हो चला था।बाबा के बचने की उसे कोई आशा की किरण नजर नहीं आ रही थी।
बाबा के हाथों को अपने हाथ में लेकर एकटक उनकी ओर निहारते हुए वह बोला-बाबा!क्या सोच रहे हो?
-आज मेरा बेटा सूरज पास होता,तो मेरे मरने के बाद मुझे मुखाग्नि देता..बस मुक्ति मिल जाती।
-मैं आपका सूरज ही तो हूँ बाबा...
कंपित रोगी-शरीर अचानक निस्पन्द होकर मौन हो गया था।
सूरज की हाथ-घड़ी टिक-टिक कर रही थी।
सूरज के गले में लटका स्टेथोस्कोप श्रृद्धांजलि देता जान पड़ रहा था।
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स्वरचित-
डा.अंजु लता सिंह 'प्रियम',नई दिल्ली
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