शीर्षक-"बेजुबान दोस्त"
सुबह उठूं भू को चूमूं-
फिर अपनी छत पर घूमूं,
माटी के बर्तन को धोकर-
स्वच्छ नीर उसमें भर लूं.
बैठ वहीं फिर पहरा दूं-
हर गम अपना बिसरा दूं,
आ जाते झट ढेर कबूतर-
अन्न के दाने बिखरा दूं.
गूंज उठें फिर इधर-उधर-
चूं-चूं चीं-चीं पाखी स्वर,
तितली,भंवरे,कीट-पतंगे-
बगिया में आ जाएं नजर .
सबको देखूं भला लगे-
जीने की भी ललक जगे,
बेजुबान ये सारे ही-
फिर भी लगते मुझे सगे.
मेरे घर में भोलू कुत्ता-
एक बिल्ली और गैया है,
इनकी देखभाल करते सब-
अपनी यह दिनचर्या है.
गैया को दूं ताजी रोटी -
दूध कटोरी पीती म्याऊँ,
भोलू को बिस्कुट भाते हैं-
इनके पीछे दौड़ लगाऊँ.
पौधों से बातें करती हूँ-
कागज,कलम दिये वरदान,
मूक रहें पर मुखर लगें सब-
इनसे ही मेरी पहचान.
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स्वरचित-
रचयिता-डा.अंजु लता सिंह, नई दिल्ली
सर्वाधिकार सुरक्षित ©®
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