कान्हा की बांसुरी-
बजती रहे,
ग्वालों की टोली-
सजती रहे.
बरसाने की गोपी-
राधिके शर्माए,
अधरों पर आस लिये-
गीत गुनगुनाए.
वृंदावन-वीथिकाओं में-
हो रौनक खुशियों की,
दिखे न कतार कोई-
बेबस, दु:खियों की.
यशुमति सब रीझें-
कान्हा पर अपने,
रुक्मणी देखें-
मधुरिम से सपने.
हर युग में आएं-
भू पर गोपाला,
जादू कर जाएं-
सब पर मतवाला.
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रचयिता-डा.अंजु लता सिंह 'प्रियम',नई दिल्ली
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