शीर्षक-" प्यार की पाती"
वो बीता ज़माना,खुशियों का ख़ज़ाना याद आए
दिल बीते दिनों को बुलाए...
जब हरकारा हाँक लगाता,अपनों का संदेसा था लाता
चिट्ठी का परस ,जगता था हरस
मन ही मन दुल्हन घबराए
सीमा पर पिया जां लुटाए
दिल बीते दिनों को बुलाए
भोली सी वो अनपढ़ दीवानी
सखी बांचे आखर की बानी
रखे सर को झुकाए ,नैना भर-भर आएं
उसे साजन बहुत याद आए
दिल बीते दिनों को बुलाए...
पढ़ी-लिक्खी बहू वो नवेली
संगी-साथी नए और सहेली
छूटा प्रियतम का देश
जाके बसी परदेश
नौकरी करके पैसे कमाए साथ कैसे पिया के रह पाए
सर पर रखा था ताज ,ऊंची भरी परवाज
खूब पैसे भी उसने कमाए
दिल बीते दिनों को बुलाए...
इंतजार करे डाकिये का
नाता उनका था बाती दिये का
बातें मीठी खरी, पाती प्यार भरी
पढ़ती जब कसक सी जगाए
दिल बीते दिनों को बुलाए
दूत बनते हवा,मेघ,पाखी
प्रेमियों तक ले जाते थे पाती
रोते थे नयन याद करके सजन
बिरहन को बहुत ही सताए
मन को जाकर कहां बहलाए
याद अपनों की उसको तो आए
दिल बीते दिनों को बुलाए..
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स्वरचित काव्य सृजन
डा. अंजु लता सिंह गहलौत
नई दिल्ली
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