"बसंत बहार"

बसंत ऋतुराज में सारी धरती स्वर्णिम होकर प्रमुदित नजर आने लगती है.

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स्वरचित गीत

शीर्षक- "बसंत बहार"

कैसी सुरभित पवन मुस्काई रे

प्यारी प्यारी बसंत रितु आई रे

 कूके कोयलिया कुहू-कुहू करके

तन मन नाचें झूम-झूमके

कैसी अलबेली मस्ती छाई रे.... 

प्यारी प्यारी……

वन,उपवन और मेरे आंगन में 

छाया खुमार मतवाले नयन में

चटकें कलीं और खिलते सुमन हैं

तितली उड़ें मन ही मन मगन हैं

पाखी की चहक मन भायी रे

प्यारी प्यारी बसंत ऋतु आई रे….


मस्त मल्हार गाए बासंती मौसम

खुशियों को संग लाए भँवरों की सरगम

सरसों की स्वर्णिम फसलें लहकतीं

खेतों की मेड़ों पर माटी थिरकती

ख़ुशी झोली में भरकर लाई रे ..

प्यारी-प्यारी बसंत ऋतु आई रे…


पीली चूनर ओढ़ रही धरती 

नभ को नमन कर अगवानी करती

केसरिया होकर दूब मुस्काई 

कीट-पतंगों में मस्ती छाई 

चली सुरभित पवन-पुरवाई रे…

प्यारी-प्यारी बसंतऋतु छाई रे….

स्वरचित गीत

डा. अंजु लता सिंह गहलौत 

नई दिल्ली

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