स्वरचित कविता
शीर्षक -" जीवन के रंग: भारत के संग"
तीन रंग का ध्वज फहराए-
मेरे देश की बात निराली,
दिल रंगीला है लोगों का-
मने यहां होली,दिवाली.
प्राची से नित रवि उदित हो-
सतरंगी किरणें बिखराए,
मेघ थकें जब झम-झम करके-
इंद्रधनुष नभ में मुस्काए.
प्रकृति खजाना है रंगों का-
कहते पात, फूल,फल,डाली,
पुण्य धरा पर रहकर झूमूं-
बात करूं रंगों की आली.
आकर्षित करते हैं मुझको-
जीवन के सब मधुरिम रंग,
मातृभूमि को सजा रहे सब-
मन में भरते अजब उमंग.
झंडे के अनमोल रंग-
हरदम मुझे लुभाएं,
हरा रंग प्रमुदित करें-
श्वेत शांति दर्शाए .
नीला रंग उम्मीद का-
भगवा जोश जगाए,
देश भक्ति के भाव सब-
अंतस में उमगाए.
लाल रंग खुशियों का सूचक-
शुभ कर्मों को करे पुनीत,
पीला रंग उमंग बरसाए-
बासंती ऋतुराज प्रतीक.
काला टीका लगा,नजर से-
बचने का है गजब तरीका,
कृष्ण केश, काली आंखों ने-
हरदम ही है दिल को जीता.
रंग गुलाबी अहसासों का-
धैर्य सिखाए मस्त जामुनी,
भूरी माटी मह-मह महके-
कहती मेरी कलम-कामिनी.
रंग बिरंगे फूलों का है-
हिंदुस्तां का यह गुलदस्ता,
भिन्न वेश,धर्म,जाति हैं-
जग में अपना सौरभ भरता.
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रचयिता- डा. अंजु लता सिंह 'प्रियम',नई दिल्ली
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