संगी-साथी(कविता)

दोस्त की जीवन में एक अलग और विशिष्ट पहचान होती है.

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शीर्षक-"संगी-साथी"


जीवन पथ पर चलते रहना

तन मन सदा मचलते रहना

जब कोई भा जाए मन को

मित्र उसी को सच्चा कहना

यही तो जग का सार है 

बिन संगी-साथी के तो

यह सृष्टि ही बेकार है

अनमोल मित्र का प्यार है


छोटी थी तो की शैतानी 

मित्र मंडली की दीवानी

मिट्टी के हम बना खिलौने

धूम मचाते कोने-कोने

चहल पहल और धमाचौकड़ी

का अनुपम संसार है

बिन संगी-साथी के तो

यह सृष्टि ही बेकार है

अनमोल मित्र का प्यार है


जिनको मिलते मन के मीत

उनकी पल-पल जुड़ती प्रीत

जीवन की मस्ती में डूबे 

गाते हैं खुशियों के गीत

बेगाने हो जाते अपने

यारी अपरंपार है.

बिन संगी-साथी के तो

यह सृष्टि ही बेकार है

अनमोल मित्र का प्यार है


कैरम,कंचे,लूडो,खो खो

गुल्ली डंडा छुपन- छुपाई

लौकी,मुक्की के संग खेली

शोर मचाया,करी लड़ाई

उनसे मिलने को तो अब भी

मन ये बेकरार है

बिन संगी-साथी के तो..

यह सृष्टि ही बेकार है

अनमोल मित्र का प्यार है


सुख दुःख के सच्चे साथी ही 

धरती पर होते अनमोल

कानों को मीठे लगते हैं 

उनके सभी सुहाने बोल

तीर नदी के बने रहें वो

हम बहती जलधार हैं

बिन संगी-साथी के तो

यह सृष्टि ही बेकार है

अनमोल मित्र का प्यार है....




सब सखियाँ फूलों सी प्यारी

उनसे महके मन की क्यारी

उन सबके दम पर ही अपना

जीवन सफल निरंतर जारी

उत्तम मित्रों के मिलने से 

जीवन सदाबहार है

बिन संगी-साथी के तो.

यह सृष्टि ही बेकार है

अनमोल मित्र का प्यार है....



जिनको मिलते मन के मीत

उनकी पल-पल जुड़ती प्रीत

जीवन की मस्ती में डूबे 

गाते हैं खुशियों के गीत

बेगाने हो जाते अपने

यारी अपरंपार है...

बिन संगी-साथी के तो.

यह सृष्टि ही बेकार है

अनमोल मित्र का प्यार है.

  ________


स्वरचित, मौलिक, अप्रकाशित एवंअप्रसारित कविता-

डॉ.अंजु लता सिंह गहलौत,नईदिल्ली




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