दहलीज़(कविता)

दहलीज़ की अस्मिता बनाये रखना परिवार के सभी सदस्यों द्वारा नारी का सम्मान बनाए रखने से ही संभव है.

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Dr. Anju Lata Singh 'Priyam'
Dr. Anju Lata Singh 'Priyam' 01 Sep, 2024 | 1 min read

स्वरचित कविता

शीर्षक- " दहलीज"

मुख्य द्वार की अनुपम शोभा होती है दहलीज

घर कीआन-बान घरनी है बोती संस्कार के बीज

विदा होए जब मां-बाबा के घर-आंगन से बेटी

नमन करें चौखट को नई परंपरा अपना लेती

ससुराल के मुख्य द्वार पर लांघे जब दुल्हन दहलीज

 तन मन में बोए जाते हैं नियम कायदों के ही बीज

पाखी सी उड़ने वाली वह परी कैद हो जाती है

पिंजरे में दाना पानी और सुख-वैभव सब पाती है

अरमानों की दुनिया सजती ही रहती है आठ पहर

मानस में उसके उठतीं इच्छाओं की उत्तुंग लहर

सासु माता, ससुर पिता और पति देव बन जाते हैं

रिश्ते नाते नए-नए सब यदा-यदा भरमाते हैं

नहीं मिले तो भूलें पीहर जीवन बन जाता अनुकूल

नयन पुलक से भर जाते हैं भावों के खिलते हैं फूल

अनुचित है दहलीज लांघकर सीमा से बाहर जाना 

बेटी हो या बहू सभी को निर्धारित कर्तव्य निभाना

दिया जलाकर दहलीजों पर दीप-पर्व की शान बढ़े

घर-बाहर का मिटे अंधेरा,लौ-प्रकाश भी ऊर्ध्व चढ़े

सत्यं,शिवम,सुंदरम की परिपाटी सबसे न्यारी है

नियमों की दहलीज ना लांघें सबकी जिम्मेदारी है

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स्वरचित- डा. अंजुलता सिंह गहलौत,नई दिल्ली

(सर्वाधिकार सुरक्षित)

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Dr. Anju Lata Singh 'Priyam'

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