#स्वरचित कविता
#"गर तू कहे तो..."
कुनकुनी धूप!बैठा रहूं पास तेरे-
सुखद ताप तेरा,रहे मुझको घेरे,
कली-वृंद-दर पर, दे हौले से दस्तक-
खिलें वे तनिक,तितलियों के हों फेरे.
तुझे देखें जी भर,गर तू कहे तो...
हरित घास फैली, सरस मखमली-
तुहिन-कण चमकते,लगे है भली,
शीतल पवन ,चले मंदिम गति से-
सुरभित हुई, मेरे मन की गली.
धरें पैर इन पर,गर तू कहे तो...
नए वर्ष का हर्ष, चुपके से बोले-
वसुधा के कानों में मिश्री सी घोले,
जूझेंगे सारे विकट हालातों से-
नया कुछ करेंगे, हटाकर झमेले.
नभ! तुझ को छू लें,गर तू कहे तो...
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रचयिता-डा.अंजु लता सिंह,नई दिल्ली
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