"यादों में बसी मेरी मां"(कविता)

मां के ममत्व को कभी भुला ही नहीं सकते।

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Dr. Anju Lata Singh 'Priyam'
Dr. Anju Lata Singh 'Priyam' 27 Nov, 2022 | 1 min read

स्वरचित कविता

शीर्षक - "यादों में बसी मेरी मां''


शैशव से ही मां को देखा-

कर्मठता के घेरे में,

सुबह सुबह नित घिर जाती थीं

वो रसोई के घेरे में.


ईश-स्तुति,तुलसी-पूजा-

उनके नियमित काम रहे,

ममतालु,स्नेहिल मां के-

मुख पर सबका नाम रहे,


चटर-पटर भोजन खाते थे-

मम्मी जी के हाथों का,

लुत्फ उठाते बैठ किचन में-

उनकी मीठी बातों का,


घर के कामों में जुट जातीं-

चेहरे पर मुस्कान लिये,

गर्वित होती उनकी हस्ती-

सबका ही सम्मान लिये,


मुंह धोती और फिर नहलातीं-

सुंदर वस्त्र हमें पहनातीं,

चोटी,पोनीटेल बनाकर-

लंच बॉक्स भी रोज लगातीं.


छुट्टी में जब भी जाते थे -

हम सब अपने गाँव में,

सुख के ही अहसास हुए-

मां की ही निर्मल छांव में.


पौ फटते ही अम्मां मेरी-

चक्की में आनाज पीसतीं,

ढेर गूंथकर आटा फिर वे-

चूल्हे धौरे हमें जीमतीं,


दादी की सेवा करतीं वो-

उनके दिनभर पैर दबातीं,

झाड़ू,चूल्हा,चौका,बर्तन-

सारे काम त्वरित निपटातीं


संयम,शील,सहनशक्ति की-

सचमुच वही मिसाल रहीं,

अब तक भी सारी रस्मों को-

घर में निभा संभाल रहीं,


कृशकाया है,मुरझाया मन-

बालक जाकर दूर बसे,

पापा को भी समझाती हैं-

रोएं मिलकर साथ हंसें,


मेरी मां ने संस्कार दे-

नैतिकता के सबक सिखाये,

इस छोटे से जीवन में ही-

गूढ़ रहस्य हमें बतलाये,


मेरी मां को नमन करूं मैं-

शत शत कोटिक बार,

हर बालक को दिया नियति ने-

यह अनुपम उपहार.


#स्वरचित

रचयिता-

डा.अंजु लता सिंह गहलौत


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Dr. Anju Lata Singh 'Priyam'

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