स्वरचित कविता
शीर्षक - "यादों में बसी मेरी मां''
शैशव से ही मां को देखा-
कर्मठता के घेरे में,
सुबह सुबह नित घिर जाती थीं
वो रसोई के घेरे में.
ईश-स्तुति,तुलसी-पूजा-
उनके नियमित काम रहे,
ममतालु,स्नेहिल मां के-
मुख पर सबका नाम रहे,
चटर-पटर भोजन खाते थे-
मम्मी जी के हाथों का,
लुत्फ उठाते बैठ किचन में-
उनकी मीठी बातों का,
घर के कामों में जुट जातीं-
चेहरे पर मुस्कान लिये,
गर्वित होती उनकी हस्ती-
सबका ही सम्मान लिये,
मुंह धोती और फिर नहलातीं-
सुंदर वस्त्र हमें पहनातीं,
चोटी,पोनीटेल बनाकर-
लंच बॉक्स भी रोज लगातीं.
छुट्टी में जब भी जाते थे -
हम सब अपने गाँव में,
सुख के ही अहसास हुए-
मां की ही निर्मल छांव में.
पौ फटते ही अम्मां मेरी-
चक्की में आनाज पीसतीं,
ढेर गूंथकर आटा फिर वे-
चूल्हे धौरे हमें जीमतीं,
दादी की सेवा करतीं वो-
उनके दिनभर पैर दबातीं,
झाड़ू,चूल्हा,चौका,बर्तन-
सारे काम त्वरित निपटातीं
संयम,शील,सहनशक्ति की-
सचमुच वही मिसाल रहीं,
अब तक भी सारी रस्मों को-
घर में निभा संभाल रहीं,
कृशकाया है,मुरझाया मन-
बालक जाकर दूर बसे,
पापा को भी समझाती हैं-
रोएं मिलकर साथ हंसें,
मेरी मां ने संस्कार दे-
नैतिकता के सबक सिखाये,
इस छोटे से जीवन में ही-
गूढ़ रहस्य हमें बतलाये,
मेरी मां को नमन करूं मैं-
शत शत कोटिक बार,
हर बालक को दिया नियति ने-
यह अनुपम उपहार.
#स्वरचित
रचयिता-
डा.अंजु लता सिंह गहलौत
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