स्वरचित कविता-"खतों की दुनिया"
याद आता है रह-रहकर, वह गुजरा हुआ जमाना
मन की सब बातों को खुलकर, पत्रों में लिख जाना
शैशव में विद्या की पत्ती तोड़ कापियों में रखते थे
जब भी पेपर होते, दर्शन करके उन्हें नमन करते थे
चिट्ठी में 'जय मां सरस्वती' लिखकर धीरज पाना
मां बाबा को लिख देते थे,भूले हम सोना,खाना
याद आता है.....
हाॅस्टल में रहकर जीवन में, आया स्वर्णिम सा एक मोड़
हाल-चाल लेने-देने को,खुद को लिया खतों से जोड़
ढेरों बातें लिखने से चिट्ठी जल्दी ही भर जाती थी
मेरी मूक कलम बेबस सी हो होकर रह जाती थी
घर की मीठी यादों से मन का बोझिल हो जाना
याद आता है....
खत में कुशल-क्षेम लिखकर ही,हमने जीना सीख लिया था
पापा मम्मी के सपनों को यश पाकर ही जीत लिया था
पापा की चिट्ठी लेकर उस पोस्टमैन का आना
मन को हर्षित कर जाता था उनकी चिट्ठी पाना
देर तलक पढ़ते थे खत को,सुख का वही खजाना
डगर पर संभलने का मौसम भी आया
युवा उम्र ने खूब हमको सताया
लिखी शेरो-शायरी अपने ही उनको
प्रीत के नाते से जोड़ा था जिनको
शर्माते सकुचाते लिखा था फसाना
याद आता है रह रह कर वो गुजरा हुआ जमाना
मन की सब बातों को खुलकर पत्रों में लिख जाना...
बेहतर पढ़ाई करी खुद की खातिर
समय से मिलाकर कदम बने माहिर
निपुणता का हमने बुना ताना-बाना
माता-पिता को ना सीखा भुलाना
खतों से ही सीखा था जीवन बिताना
याद आता है....
अब तो ना साईकिल की घंटी बजाता
कोई डाकिया घर के द्वारे ना आता
ऑनलाइन आता है कोरियर से माल
नए युग में सैलफोन मचाते बवाल
खतों का हुआ रे अजब बुरा हाल
नई चाल ढाल का हर एक दीवाना
पोस्टकार्ड,अंतर्देशीय का न कोई ठिकाना
याद आता है...
------------
स्वरचित,मौलिक, अप्रकाशित एवंअप्रसारित गीतात्मक कविता-
रचयिता-डा.अंजु लता सिंह गहलौत, नई दिल्ली
सर्वाधिकार सुरक्षित ©®
Comments
Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓
No comments yet.
Be the first to express what you feel 🥰.
Please Login or Create a free account to comment.