विषय-"चाँद मुबारक"
स्वरचित कविता-
बचपन से ही सुनती आई ,चंदा सबका प्यारा है
तारों का स्वामी कहलाता ,अनुपम राज दुलारा है
दादी मां ने लोरी गाई चंदा मामा दूर के
रोज रात में आसमान को देखा हमने घूर के
भू पर इसने हर बालक का जीवन सदा संवारा है
बचपन से ही सुनती आई, चंदा सबका प्यारा है
कान्हा जी ने ज़िद ठानी थी, लूंगा मैया चंद्र खिलौना
झट पानी में दिखा छवि को मना लिया था श्याम सलोना
हर मां ने शिशु को, चंदा कहकर ही सदा पुकारा है
बचपन से ही.....
धीरे-धीरे बड़ी हुई मैं, चंचल गोल-मटोल किशोरी
गोरा मुखड़ा चांद का टुकड़ा,कहती मुझको अम्मा मोरी
पागल प्रेमी बन चकोर ने जीवन इस पर हारा है
बचपन से ही.....
लाज शरम आ बैठी मन में ,तन भी मेरा भरमाया
बदली से जब झांका चंदा, याद कोई हरदम आया
जीवन साथी सा बन बैठा, लगता ज्यों हरकारा है
बचपन से ही....
रोज निशा में ताके मुझको, झांके है छत पर मेरी
रे मयंक! तू मुझे लुभाता, प्यारी है यह लत तेरी
बेटा तूने आंचल में आ, जीवन मेरा संवारा है
बचपन से ही.....
शिव के मस्तक पर शोभित हो, जगमग जग उजियारा करता
सुख शीतलता देकर सबको ,तन-मन का अंधियारा हरता
शरद-चांदनी का चंदा तू लगता सबसे न्यारा है
बचपन से ही....
चांद ईद का लगे सुहाना, राह तकें सब दीद करें
करवा चौथ में चमक चमक कर, हर मन में उम्मीद भरे
बच्चों का मामा कहलाता ,मस्ती भरा पिटारा है
बचपन से ही....
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रचयिता- डा. अंजु लता सिंह गहलोत, नई दिल्ली
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