"प्रकृति:रहस्यमयी और खुशहाल"(कविता)

प्रकृति हमेशा हमारी सहचरी बनी रहती है.इसकी देखभाल करना हमारा कर्तव्य है.

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स्वरचित कविता

 शीर्षक- प्रकृति: रहस्यमयी और खुशहाल


प्रात-भ्रमण कर बैठ गई ,मखमली घास पर मैं कुछ पल 

बाल- रवि को नमन किया और मन में मची सुखद हलचल

खुद से खुद ही पूछा मैंने, इस धरती पर कहाँ सुकून?

झट से मेरा दिल यह बोला प्रकृति बिना तो सब कुछ सून.

इस वसुधा पर जन्म लिया है जिसने वही महान है

इसकी माटी चंदन वाली जीवन का वरदान है

बचपन से लेकर अंतिम सांसों का सफर यहीं कटता है

मेरा तन मन इसीलिए भगवान नाम हरदम रटता है

भ से भूमि रहस्यमयी रत्नों का भंडार है

ग से गगन अमित मंगलमय महिमा अपरंपार है

व से वायु प्राण सभी के सदा सुरक्षित रखती है

अ से अग्नि ताप तपन से सबको राहत देती है

नीर नियति में सबसे पावन बहता रहे सदा निस दिन 

जीवन का पर्याय यही है रह न सकते इसके बिन

वसुधा के नर नारी तुमसे मेरा एक सवाल है..... 

क्यों रूठे हो इस धरती से क्या यह तुम्हें खयाल है?

अंबर भू पर तेजाबी वर्षा करने की सोच रहा 

छेद हुआ ओजोन परत में परिवेश मुंहजोर हुआ

तरस खाओ हालत पर इसकी मन में मचा बवाल है

वसुधा के नर नारी तुमसे मेरा एक सवाल है ....

खनन किया है निशदिन तुमने चीर दिया है सीने को

धरती का तन घायल करके तरस रहे अब जीने को

पर्वत काटे,बांध बनाए,ताल नदी बेहाल है

वसुधा के नर नारी तुमसे मेरा एक सवाल है ....

सुबह-सुबह प्यारे पंछी तब मीठी तान सुनाते थे

अपनी-अपनी बोली में गाकर सारे इठलाते थे

जब कोरोना आया था इस धरती ने ही नेह दिया 

प्रफुलित होकर कदम-कदम पर परहित नि:संदेह किया

गोरैया गायब हैं सारी बिछे तार के जाल हैं

नीड़ बनाकर नही लुभाते पंछी अब तो पेड़ों को

कूलर ऐ सी पर बैठे ही झेलें गर्म थपेड़ों को

आए कहीं अतिवृष्टि तो पड़ता कहीं अकाल है 

सोन चिरैया कोकिल मैंना शाखों पर न थिरक रहे

तितली भंवरे कीट पतंगे उपवन से ही सरक रहे

गिद्ध हुए गायब अब सारे मन में बड़ा मलाल है 

जो कुदरत को खुश कर पाए कहां छुपा वो लाल है?

वसुधा के नर नारी तुमसे मेरा एक सवाल है

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स्वरचित- डा. अंजु लता सिंह गहलौत ,नई दिल्ली


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